मुहर्रम की शुरुआत आज शाम से होगी और शनिवार शाम तक मोहर्रम चलेगा. मोहर्रम को दरअसल हिजरी भी कहा जाता है. यह एक मुस्लिम त्यौहार नही बल्कि मातम का दिन होता है। मोहर्रम से मुस्लिम कैलंडर के मुताबिक़ साल का पहला महीना शुरु होता है. इसका कितना महत्व है इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस्लाम के चार पवित्र महीनों में इस महीने को भी शामिल किया गया है.
ये है मोहर्रम का इतिहास
इराक़ में यजीद नाम का बादशाह था जो बेहद ज़ालिम था। उसे इंसानियत का दुश्मन माना जाता था. लोग उससे इतना तंग थे कि हज़रत इमाम हुसैन ने ज़ालिम यजीद के ख़िलाफ़ जंग का एलान कर दिया था. जंग के दौरान हज़रत इमाम हुसैन को कर्बला नाम के स्थान पर परिवार और दोस्तों के साथ क़त्ल कर दिया गया. जिस महीने हुसैन और उनके परिवार को शहीद किया गया था वह मुहर्रम का ही महीना था. उस दिन 10 तारीख थी. इसके बाद मुसलमानों ने इस्लामी कैलेंडर का नया साल मनाना छोड़ दिया. बाद में मुहर्रम का महीना ग़म और दुख के महीने में बदल गया.
शिया मुसलमान पहनते हैं 10 दिन काले कपड़े, सन्नी रखते हैं रोज़ा
मुहर्रम के महीने में शिया मुसलमान 10 दिन काले कपड़े पहनते हैं. दूसरी तरफ़ सुन्नी मुसलमान 10 दिन तक रोज़ा रखते हैं. इस दौरान इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में शहीद हुए थे उन्हें याद किया जाता है और इनकी आत्मा की शांति की दुआ की जाती है.
जिस स्थान पर हुसैन को शहीद किया गया था वह इराक की राजधानी बग़दाद से 100 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में एक छोटा-सा कस्बा है. मुहर्रम महीने के 10वें दिन को आशुरा कहा जाता है. भारत में मुहर्रम के दौरान ताज़ियों के जुलूस भी निकाले जाते हैं और साम तक उन्हें पानी में ठंडा कर दिया जाता है. इमाम हुसैन और उनके साथ शहीद हुए लोगों की याद कर कुछ लोग तो जुलूस में मामत करते हुए ख़ुद को ज़ख़्मी भी कर लेते हैं.