तभी नारद भगवान को ऊपर की ओर एक केतकी का फूल मिला। और विष्णु से आकर बोले कि इस स्तंभ का कारण यह फूल है। तो भगवान विष्णु ने बह्मा के चरण पकड़कर माफी मांगने लगे। तभी भगवान शिव ब्रह्मा का छल देखकर वहां पर प्रकट हुए। तभी विष्णु भगवान ने भगवान शिव के चरण पकड़कर माफी मांगी। जिससे कारण भगवान शिव प्रसन्न होकर विष्णु की सत्यवादिता की प्रसन्ना करने लगे।
उसी समय भगवान के भौहें के बीच से एक ज्योति से काल भैरव को प्रकट किया। वह सामने आकर भगवान शिव के आगे हाथ जोड़कर बोले कि हे प्रभु मेरे लिए क्या आदेश है। भगवान शिव ने क्रोधित होकर कहा कि भैरव तुम अपनी पैनी तलवार से ब्रह्मा का पांचवा सिक काट दो। काल भैरव ने ब्रह्मा का सिर पकड़कर उसे धड़ से अलग कर दिया। क्योंकि ब्रह्मा ने इसी मुख से झूठ बोला था।
शिव के कहने पर भैरव काशी को प्रस्थान किया जहां ब्रह्म हत्या से मुक्ति मिली। रूद्र ने इन्हें काशी का कोतवाल नियुक्त किया। आज भी ये काशी के कोतवाल के रूप में पूजे जाते हैं। इनका दर्शन किये वगैर विश्वनाथ का दर्शन अधूरा रहता है। जिस दिन यह सब हुआ उस दिन कृष्ण पक्ष की अगहन मास की अष्टमी थी। जिसे काल भैरव के जन्म तिथि के रूप में मनाते है।