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...तो इस कारण कैकेयी ने मांगा था राम के लिए वनवास

कहा जाता है कि महारानी कैकेयी ने अपने बेटे भरत को राजपाट, सिंहासन के लिए श्री राम को वनवास का वरदान मांगा था। जिसके कारण पूरी दुनिया कैकयी को ही दोषी मानती है, लेकिन श्री राम को वनवास भेजने का और ही कोई कारण था।

India TV Lifestyle Desk
Published : April 27, 2017 9:24 IST
lord rama
lord rama

धर्म डेस्क: रामायण में बारें में हम बहुत सी बातें जानते है। राम-रावण का युद्ध, सीता हरण, सीता स्वयंवर, जैसे कई अध्याय है। जिसके बारें में हम अपनी पीढ़ियों से सुनते ही चले आ रहे है। इसी में एक अध्याय है श्री राम को वनवास का।

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कहा जाता है कि महारानी कैकेयी ने अपने बेटे भरत को राजपाट, सिंहासन के लिए श्री राम को वनवास का वरदान मांगा था। इसके पीछे मंथरा का भी हाथ माना जाता है। जिसके कारण पूरी दुनिया कैकयी को ही दोषी मानती है, लेकिन श्री राम को वनवास भेजने का और ही कोई कारण था। जानिए आखिर क्यों कैकैयी ने राजा दशरथ ने मांगा था श्री राम को वनवास का वरदान।

एक बार युद्ध में राजा दशरथ का मुकाबला बाली से हो गया। राजा दशरथ की तीनों रानियों में से कैकयी अस्त्र-शस्त्र और रथ चालन में पारंगत थीं। इसलिए कई बार युद्ध में वह दशरथ जी के साथ होती थीं।

जब बाली और राजा दशरथ की भिडंत हुई उस समय भी संयोग वश कैकई साथ ही थीं। बाली को तो वरदान था कि जिस पर उसकी दृष्टि पड़ जाए उसका आधा बल उसे प्राप्त हो जाता था।     

स्वाभाविक है कि दशरथ परास्त हो गए। बाली ने दशरथ के सामने शर्त रखी कि पराजय के मोल स्वरूप या तो अपनी रानी कैकेयी छोङ जाओ या फिर रघुकुल की शान अपना मुकुट छोङ जाओ। दशरथ जी ने मुकुट बाली के पास रख छोङा और कैकेयी को लेकर चले गए।

कैकेयी कुशल योद्धा थीं। किसी भी वीर योद्धा को यह कैसे सुहाता कि राजा को अपना मुकुट छोड़कर आना पड़े। कैकेयी को बहुत दुख था कि रघुकुल का मुकुट उनके बदले रख छोड़ा गया है।

वह राज मुकुट की वापसी की चिंता में रहतीं थीं। जब श्री राम जी के राजतिलक का समय आया तब दशरथ जी व कैकयी को मुकुट को लेकर चर्चा हुई। यह बात तो केवल यही दोनों जानते थे।

कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया। उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।

श्री राम जी ने जब बाली को मारकर गिरा दिया। उसके बाद उनका बाली के साथ संवाद होने लगा। प्रभु ने अपना परिचय देकर बाली से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था।

तब बाली ने बताया- रावण को मैंने बंदी बनाया था। जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया. प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें। वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।

जब अंगद श्री राम जी के दूत बनकर रावण की सभा में गए। वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी।

अंगद की चुनौती के बाद एक-एक करके सभी वीरों ने प्रयास किए परंतु असफल रहे। अंत में रावण अंगद के पैर डिगाने के लिए आया। जैसे ही वह अंगद का पैर हिलाने के लिए झुका, उसका मुकुट गिर गया।

अंगद वह मुकुट लेकर चले आए। ऐसा प्रताप था रघुकुल के राज मुकुट का। राजा दशरथ ने गंवाया तो उन्हें पीड़ा झेलनी पड़ी, प्राण भी गए। बाली के पास से रावण लेकर भागा तो उस के भी प्राण गए। रावण से अंगद वापस लेकर आए तो रावण को भी काल का मुंह देखना पङा।

परंतु कैकेयी जी के कारण रघुकुल की आन बची। यदि कैकेयी श्री राम को वनवास न भेजतीं तो रघुकुल का सौभाग्य वापस न लौटता। कैकेयी ने कुल के हित में कितना बड़ा कार्य किया और सारे अपयश तथा अपमान को झेला. इसलिए श्री राम माता कैकेयी को सर्वाधिक प्रेम करते थे।

भगवान राम ने इस तरह मांगा कैकेई से वनवास

कैकेई ने कहा:——
है एक दिन की बात मैं छत पे घमा रही थी।
भीगे हुए थे बाल मैं उनको सुखा रही थी।।
पीछे से मेरी आंखें किसी ने बंद कर लिया।
आंखों का पलभर में सब आनंद लें लिया ।।
मैने कहा आंखों से मेरे हाथ हटाओ ।
उसने कहा पहले मेरा तुम नाम बताओ ।।
मैंने कहा लखन मुझे न आज सताओ ।
उसने कहा लखन नंही हूं नाम बताओ।।
मैंने कहा भरत हमारे पास तो आओ ।।
उसने कहा भरत नही हूं नाम बताओ ।
मैंने कहा सत्रुघन ना मुझको सताओ ।।
उसने कहा सत्रुघन नही हूं नाम बताओ।
जो हाथ हटाओगे तो तुम्हे दान मिलेगा ।।
मुंह मांगा आज तुमको बरदान मिलेगा ।।
जो हाथ हटाया तो छवी थी सामने ।
बनबास का बरदान लिया मांग रामने ।।

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