- इसके बाद लगातार तीनों रथों को एक रस्सा से बांधा जडाता है। जिसे भक्तगण खींचते है। माना जाता है कि इन रस्सी को छूने मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती हैं।
- यह मंदिर पुरी के नगर से होते हुए 'गुण्डीचा मंदिर' पहुंचते है। जहां पर सात दिनों तक भगवान यहां पर विक्षाम करते हैं।
- इस बाद फिर ये रथों को आषाढ़ की दसवें दिन मुख्य मंदिर की ओर पुन: ले जाया जाता है और इसे 'बहुड़ा यात्रा' कहते हैं।
- इस मंदिर में आकर सभी मूर्तियां रथ पर ही रहती है। एकादशी के दिन मंदिर के द्वार खोलकर यह मूर्ति अंदर स्थापित की जाती हैं।