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दीपावली में इस कारण महालक्ष्मी की जाती है पूजा, श्री राम की नहीं

दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन माता के आगमन में अमावस्या की काली रात को प्रकाश से जगमगा दिया जाता है। हमारे दिमाग में कभी न कभी यह बात जरुर आती होगी कि महालक्ष्मी की आराधना और उपासन दीपावली के ही दिन क्यों की जाती है और किसी ओर

India TV Lifestyle Desk
Updated : October 30, 2016 6:58 IST
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धर्म डेस्क: दीपावाली हिन्दू धर्म का मुख्य पर्व है। रोशनी का पर्व माना जाने वाली दीवाली कार्तिक अमावस्या के दिन होती है। इस साल दीवाली 11 नवंबर 2015 को है। इस दिन श्री गणेश और ऐश्वर्य की देवी महालक्ष्मी जी की पूजा की जाती है। माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा श्री रामचंद्र अपने चौदह साल का वनवास करके वापस लौटे थे।

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दीपावली के दिन महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन माता के आगमन में अमावस्या की काली रात को प्रकाश से जगमगा दिया जाता है। हमारे दिमाग में कभी न कभी यह बात जरुर आती होगी कि महालक्ष्मी की आराधना और उपासन दीपावली के ही दिन क्यों की जाती है और किसी ओर दिन क्यों नही। इसके पीछे क्या वजह है।

कई लोगों को इसके कारण के बारें में पता होता है और कई लोगों को नही। अगर आपको भी इसके बारें में नही पता तो हम अपनी खबर में बता रहें कि आखिर इस दिन ही क्यों महालक्ष्मी की पूजा की जाती है। साथ ही गणेश जी और सरस्वती की क्यों की जाती है। जानिए आखिर इसके पीछें क्या रहस्य है।

यह रहस्य युगों पहले का है जब समुद्रमंथन नही हुआ था। हेलता और राक्षसों के बीच हमेशा युद्ध होते रहते थे। जिनमें कभी देवता बलशाली होते तो कभी राक्षस। लेकिन इस समय देवता राक्षसों में भारी पड़ रहे थे। जिसके कारण राक्षस पाताल लोक में छिप गए थे।

वह जानते थे कि वह इतने शक्तिशाली नही कि देवलाओं से लड़ सकें। दूसरी तरफ देवताओं के पास महालक्ष्मी अपनी कृपा बरसा रही थी। मां लक्ष्मी अपने आठों रूपों के साथ इंद्रलोक में बसी हुई थी। जिसके कारण देवता अंहकार से भरे हुए थे। वह अपने आगे किसी को कुछ नही समझते थे।

एक दिन दुर्वासा ऋषि अपने किसी काम के कारण उन्हें समामन की माला मिली थी। उसे पहने हुए वह स्वर्ग की ओर जा रहे थे। वे मदमस्त होकर अपने इष्ट का स्मरण करते हुए चले जा रहे थे कि उन्हे सामने से भगवान इंद्र अपने ऐरावत हाथी में आते हुए दिखाई दिए। देवराज इंद्र को देखकर ऋषि प्रसन्न हो गए और अपने गले कि माला उतार कर इंद्र के गलें में डालने कि लिए उछाली, लेकिन इंद्र अपने मय में मस्त थे जिसके कारण उन्होनें ऋषि से प्रणाम तो किया लेकिन माला नही संभाल पाएं और उसे ऐरावत के सिर में डाल दी।

जैसे ही ऐरावत को अपने सिर में कुछ होने का अनुभव हुआ उसनें तुरंत अपना सिर हिलाकर माला जमीन में गिरा दी और उसे पैरों से कुचल दिया। जब ऋषि ने यह देखा तो वह क्रोधित हो गए, क्योकि उन्हें इससे अपमान का अनुभव हुआ। जिसके कारण उन्होने इंद्र से तेज आवाज में कहा कि हे इंद्र तुम्हे जिस बात का इतना अंहकार है। वह तेरे पास से तुरंत पाताललोक चली जाएगी।

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