अब यज्ञ आरंभ हो चुका था, लेकिन थोड़ी ही देर बाद ही सावित्री वहां पहुंचीं और यज्ञ में अपनी जगह पर किसी और औरत को देखकर वे क्रोधित हो गईं। गुस्से में उन्होंने ब्रह्माजी को शाप दिया और बोली कि जाओ इस पृथ्वी लोक में तुम्हारी कहीं पूजा नहीं होगी। यहां का जन-जीवन तुम्हें कभी याद नहीं करेगा।
इस तरह देवी को क्रोधित देखकर सभी देवता लोग डर गए। उन्होंने उनसे विनती की कि कृपया अपना शाप वापस ले लीजिए। लेकिन सावित्री ने एक बात नहीं मानी, लेकिन कुछ समय बाद जब उनका गुस्सा शांत हुआ तो उनको अपनी भूल का पछतावा हुआ और फिर वह बोली कि इस धरती पर सिर्फ पुष्कर में आपकी पूजा होगी। कोई भी दूसरा आपका मंदिर बनाएगा तो उसका विनाश हो जाएगा।
पद्म पुराण के अनुसार माना जाता है कि क्रोध शांत होने के बाद सावित्री पुष्कर के पास मौजूद पहाड़ियों पर जाकर तपस्या में लीन हो गईं और फिर वहीं की होकर रह गईं। मान्यतानुसार आज भी देवी यहीं रहकर अपने भक्तों का कल्याण करती हैं। इन्हें कल्याण की देवी माना जाता है। इनकी पूजा करने से सुहाग की उम्र लंबी होती है। साथ ही हर मनोकामना पूर्ण होती है।
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