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साधु क्यों रखते है अपने साथ माला, जटा, तिलक, भस्म और कमंडल, जानिए

ऐसे साधु होते है जो अपने शरीर में भस्म, जटाएं, कानों में कुंडल, गले में रुद्राक्ष का माला और कुछ तो अर्धनग्न और हाथ में चिमटा, त्रिशुल औक कंमडल लिए रहते है तो हमारे मन में एक बात आती है कि आखिर ये अपने साथ में चीजे क्यों लिए रहते है। कभी इन लोगों को

India TV Lifestyle Desk
Updated on: January 11, 2016 23:54 IST
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धर्म डेस्क: हिंदू धर्म में साधुओं का एक विशेष महत्व है। इन्ही में से उनका पहनावा ही उनके बारें में बता देता है कि वह किस तरह के साधु-संत है। इनको वेश-भूषा एक साधारण इंसान से बिल्कुल अलग होती है। 

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ऐसे साधु होते है जो अपने शरीर में भस्म, जटाएं, कानों में कुंडल, गले में रुद्राक्ष का माला और कुछ तो अर्धनग्न और हाथ में चिमटा, त्रिशुल औक कंमडल लिए रहते है तो हमारे मन में एक बात आती है कि आखिर ये अपने साथ में चीजे क्यों लिए रहते है। कभी इन लोगों को इन चीजों से परेशानी नहीं होती। जानिए इन सब चीजों को लेने के पीछे क्या कारण है।  

भस्म

भगवान शिव भस्म रमाते हैं। अपने अराध्य की ही तरह शैव संप्रदाय के नागा साधुओं को भस्म रमाना अति प्रिय होता है। रोजाना स्नान के बाद ये अपने शरीर पर भस्म लगाते हैं। उदासीन में भी कई साधु भस्म रमाते हैं।

कमंडल, चिमटा और त्रिशूल
नागा साधु अपने आप में एक योद्धा होते है। वह शस्त्र के रूप में फरसा, तलवार और त्रिशूल साथ रखते है। साधु अपने हाथ में कमंडल, त्रिशूल या फिर चिमटा साथ रखते हैं। तो कुछ साधु धातु के तो कुछ तुंबे के कमंडल का इस्तेमाल करते हैं।

गले में माला
साधु लोग अपने गले में नाला घारण करे रहते है। इसके पीछे अपने-अपने संप्रदाय की बात होती है। शैव संप्रदाय के लोग रुद्राक्ष की माला, वैष्णव के तुलसी की माला और इउसी तरह अखाड़ा या उपसंप्रदाय के  साधु अपनी तरह से माला धारण करते है।

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