धर्म डेस्क: महाभारत के युद्ध से कौन नहीं परिचित है। इसी में एक महानायक थे। भीष्म पितामह जो कि कौरवों और पांडवों दोने के पितामह थे। साथ ही गंगा के पुत्र। साथ ही आपने ये भी सुना होगा कि वह एक ही मात्र ऐसे शख्स थे जो कि कि बाण की शय्या में पूरे 10 दिनों के लिए लेटे रहे थे। लेकिन आप यह बात नहीं जानते है कि वह अपनी जिंदगी के अंतिम क्षणों में शय़्या में ही क्यों लेते रहे थे।
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जबकि उसके शरीर से तीर निकाला जा सकता था। साथ ही वह चाहते तो तुरंत ही अपने प्राण त्याग सकते है थे। आखिर इसके पीछे क्या कारण था। जानिए इसके पीछे किया है कहानी।
जब कौरवों और पांडवों के बीच छिड़े भीषण संग्राम में पांडवों के प्रलयंकारी योद्धा वीर अर्जुन ने शिखंडी का सहारा लेते हुए भीष्म पितामह को अपने शस्त्र रखने पर मजबूर कर दिया और इसी बीच श्रीकृष्ण के कहने पर अर्जुन ने कई सौ बाण इकट्ठे भीष्म पर छोड़ दिए थे। ये बाण भीष्म के शरीर में अंदर तक गड़ गए। इन बाणों ने गंगापुत्र भीष्म के हर अंग को छेदकर रख दिया। लेकिन इतने बाणों से छिद जाने के बाद भी भीष्म की मृत्यु नहीं हुई, क्योंकि उनका भाग्य कुछ अलग था।
इस खबर को फैलने पर कौरवों की सेना में हाहाकार मच जाता है। दोनों दलों के सैनिक और सेनापति युद्ध करना छोड़कर भीष्म के पास एकत्र हो जाते हैं। दोनों दलों के राजाओं से भीष्म कहते हैं, राजन्यगण। मेरा सिर नीचे लटक रहा है। मुझे उपयुक्त तकिया चाहिए। इतना कहते हुए तमाम राजा और योद्धा मूल्यवान और तरह-तरह के तकिए ले आते हैं।
लेकिन भीष्म उनमें से एक को भी न लिया और मुस्कुरा कर कहा कि ये तकिए इस वीर शय्या के काम में आने योग्य नहीं हैं राजन। फिर वे अर्जुन की ओर देखकर कहते हैं, पुत्र, तुम तो क्षत्रिय धर्म के विद्वान हो। क्या तुम मुझे उपयुक्त तकिया दे सकते हो?' इतना सुनते हुए अर्जुन ने आंखों में आंसू लिए उनको अभिवादन कर भीष्म को बड़ी तेजी से ऐसे 3 बाण मारे, जो उनके ललाट को छेदते हुए पृथ्वी में जा लगे। इसीलिए इससे इनको आराम मिला।
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