Wednesday, December 25, 2024
Advertisement
  1. Hindi News
  2. लाइफस्टाइल
  3. जीवन मंत्र
  4. श्राद्ध पक्ष के बारें में जानिए कुछ जरुरी बातें

श्राद्ध पक्ष के बारें में जानिए कुछ जरुरी बातें

पितर पक्ष या श्राद्ध के दिनों में किसी भी नए वास्तु या वस्त्रो की खरीद को अशुभ माना जाता हैं| हर वर्ष हिन्दू पंचांग के अनुसार श्राद्ध की तिथियां तय होती हैं| पित्र पक्ष का आखिरी दिन पित्र अमावस्य श्राद्ध के नाम से जाना जाता है,,जानिए और बातें..

India TV Lifestyle Desk
Updated : September 20, 2016 20:14 IST
shraddh paksha
shraddh paksha

धर्म डेस्क: श्राद्ध शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के दो मूल शब्द, ‘सत्’ एवं ‘आधार’ से होती हैं| जिसका सरल भाषा में अनुवाद श्रृद्धा एवं आस्था से किए गए किसी भी कार्य  को करना हैं| हिन्दू आस्था में श्राद्ध का पालन हमारे पूर्वजो (पितरों) की शान्ति के लिए किया जाता हैं।

ये भी पढ़े-

खासतौर से स्वर्गीय माता पिताओं की आत्मा की शान्ति एवं उनके आशीष के लिए| वास्‍तु कन्‍सलटेन्‍ट की रिद्धि बहल बताती हैं कि इस प्रथा के ज़रिए हम अपने स्वर्गीय पूर्वजो के योगदान को याद करते हुए उन्हें सम्मान ज़ाहिर करते हैं|

गरुण पुराण के अनुसार मृत्यु के 13 दिन पश्चात, आत्मा यमपुरी की ओर अग्रसर हो जाती है और 11 महीनो के बाद, 12वें महीने में यमराज के प्रांगण में प्रवेश करती हैं| इस यात्रा के दौरान वह बिना जल एवं भोजन के रहती हैं| यह माना जाता है कि पुत्र द्वारा पिंड दान एवं तर्पण से पुरखों की आत्मा की भूख एवं प्यास को तृप्त किया जाता हैं| अर्थात श्राद्ध के संस्कारों को काफी अहम माना जाता हैं|

श्राद्ध का पालन हर वर्ष अश्विन कृष्णा पक्ष मास की पूर्णिमा से अमावस्या के बीच के 15 दिनों में किया जाता हैं| श्राद्ध में पितरों की शान्ति के लिए शाकाहारी भोजन या उनके पसंदीदा व्यंजनों को तैयार किया जाता हैं| इस भोजन को ब्राह्मण या पंडितो को परोसा जाता हैं और इस आयोजन को ब्राह्मण भोज कहते हैं| भोजन का कुछ हिस्सा गाय, बिल्ली, कुत्ते या कौओं को खिलाना भी इस प्रथा का हिस्सा है| गरीबों या बेघरो को भी खाना खिलाया जा सकता हैं |

भोजन दान की क्रिया स्वर्गीय परिवारजन के मृत्यु की बरसी पर या पितर पक्ष के दौरान किसी विशेष तिथि पर की जा सकती हैं | ये माना जाता है कि श्राद्ध के दौरान सच्चे मन से किये गए पितर दान से, हमारे स्वर्गवासी माता पिता की आत्मा को शान्ति मिलती हैं एवं उनका आशीष हम पर सदैव बना रहता हैं एवं हमारे जीवन में सुख समृद्धि भी बरकरार रहती हैं |

तर्पण या पिंड दान अकाल मृत्यु में मरे परिवार जनों की आत्मिक शान्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण दान माना जाता है| इससे आत्मा को निर्वाण की प्राप्ति होती हैं |

महाभारत के अनुसार, जब कर्ण की मृत्यु हुई उसकी आत्मा को स्वर्ग में भेज दिया गया| वहां भोजन में उसे सिर्फ सोने एवं चांदी के आभूषण ही मिले, इस पर कर्ण ने इंद्र देव से प्रश्न किया| इस पर इंद्र देव ने उत्तर में कहा कि, उसने अपने जीवन में केवल सोने और चांदी के आभूषण ही दान में दिए पर कभी भी अपने पूर्वजो को भोजन दान नहीं किया|

इस पर इंद्र देव ने कर्ण को 15 दिन का समय दिया एवं उसे पुनः धरती लोक जाके श्राद्ध एवं तर्पण के संस्कारों को निभाने को कहा| कर्ण ने ऐसा ही किया और अपने पितरों की शान्ति के लिए पिंड दान किया|

पितर पक्ष या श्राद्ध के दिनों में किसी भी नए वास्तु या वस्त्रो की खरीद को अशुभ माना जाता हैं| हर वर्ष  हिन्दू पंचांग के अनुसार श्राद्ध की तिथियां तय होती हैं| पित्र पक्ष का आखिरी दिन पित्र अमावस्य श्राद्ध के नाम से जाना जाता है, इस दिन किसी भी परिवार जन के लिए श्राद्ध किया जा सकता हैं |

श्राद्ध के दिनों निम्न कार्यों को करने से परहेज करना चाहिए:

  • खाना बनाने के लिए मांसाहारी खाद्य पदार्थो का उपयोग नहीं करना चाहिए
  • शराब का सेवन ना करे
  • भोजन को पकाने एवं परोसने के लिए धातु के बर्तन का प्रयोग ना करे
  • श्राद्ध के संस्कारों को भोर, संध्या या रात्री के समय न करें |

Latest Lifestyle News

India TV पर हिंदी में ब्रेकिंग न्यूज़ Hindi News देश-विदेश की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट और स्‍पेशल स्‍टोरी पढ़ें और अपने आप को रखें अप-टू-डेट। Religion News in Hindi के लिए क्लिक करें लाइफस्टाइल सेक्‍शन

Advertisement
Advertisement
Advertisement