धर्म डेस्क: हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक मेला सिंहस्थ कुंभ उज्जैन में जोरो-शोरो से चल रहा। जहां पर नागा साधु किसी न किसी कारण आकर्षण का केंद्र बने हुए है। नागा साधु का जीवन सबसे अलग और निराला होता है। उनको ग्रहस्थ जीवन से कोई मतलब नहीं होता है। इनका जीवन कई कठिनाइयों से भरा हुआ होता है।
इन लोगों को दुनिया में क्या हो रहा है। इस बारें में इन्हें कोई मतलब है। इनके बारें में हर एक बात निराली होती है। वह नागा साधु बहुत ही कठिनाइयों के साथ बनते है। कई तपस्याओं के बाद वह नागा साधु कहलाते है।
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आपने नागा साधु को देखा होगा तो वह कभी कपड़े पहने नहीं देखा होगा। साथ ही आपने देखा होगा कि वो अपने शरीर को भभूति से ढके रहते है। उनके शरीर में एक भी कपड़े नहीं होते है। इस भभूत को उनके श्रृंगार का एक हिस्सा माना जाता है। लेकिन आपके दिमाग में ये बात नहीं आती है कि आखिर ये भभूत बनती कैसे है। यह भस्म नागा साधुओं को हर बीमारी से बचाता है। जिसके कारण नागा साधु कभी बीमार नहीं होते है।
माना जाता है कि नागा साधु या तो किसी मुर्दे की राख को शुद्ध करके शरीर पर मलते हैं या उनके द्वारा किए गए हवन की राख को शरीर पर मलते हैं या फिर यह राख धुनी की होती है। जानते है कि आखिर वह किस चीज का भभूत बनाते है और इसकी प्रक्रिया क्या हैं।
नागा साधु भभूत बनाने के लिए हवन कुंड में पीपल, पाखड़, रसाला, बेलपत्र, केला व गऊ के गोबर को भस्म (जलाना) करते हैं। इस भस्म की हुई सामग्री की राख को कपड़े से छानकर कच्चे दूध में इसका लड्डू बनाया जाता है। इसे सात बार अग्नि में तपाया और फिर कच्चे दूध से बुझाया जाता है। इस तरह से तैयार भस्म को समय-समय पर लगाया जाता है। जिसे नागा साधु का वस्त्र माना जाता है।