Thursday, November 28, 2024
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52 सालों बाद जन्माष्टमी में अनोखा संयोग, इस मुहूर्त में करें पूजा

स बार जन्माष्टमी 25 अगस्त को हैं। इस बार इस दिन बहुत ही विशेष संयोग हैं। इस बार जन्माष्टमी में अष्टमी और रोहिणी नक्षत्र पड़ रहा हैं। जिसके कारण इस दिन पूरा करना काफी फलदायक साबित हो सकता हैं। ऐसा योग 52 साल पहले 1958 में बना था।

India TV Lifestyle Desk
Updated : August 25, 2016 10:38 IST

lord krishna

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भाद्रपद कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि को आधी रात में श्री कृष्ण का जन्म हुआ था इसलिए इसी दिन यह व्रत करना चाहिए। इस दिन आप पूरे दिन व्रत रखें और भगवान हरि की पूजा मंत्रों से करके रोहिणी नक्षत्र के अंत में पारण करें। अर्द्ध रात्रि में जब आज श्री कृष्ण की पूजा करें तो उन्हे सबसे पहलें स्नान कराए। स्नान कराते वक्त इस मंत्र का ध्यान करें-
"ऊं यज्ञाय योगपतये योगेश्रराय योग सम्भावय गोविंदाय नमो नम:"

इसके बाद श्री हरि की पूजा इस मंत्र के साथ करनी चाहिए
"ऊं यज्ञाय यज्ञेराय यज्ञपतये यज्ञ सम्भवाय गोविंददाय नमों नम:"

इसके बाद श्री कृष्ण के पालने में विराजमान करा कर इस मंत्र के साथ सुलाना चाहिए-
"विश्राय विश्रेक्षाय विश्रपले विश्र सम्भावाय गोविंदाय नमों नम:"

जब आप श्री परि को शयन करा चुके हो इसके बाद एक पूजा का चौक और मंडप बनाए और श्रीकृष्ण के साथ रोहिणी और चंद्रमा की भी पूजा करें। उसके बाद शंख में चंदन युक्त जल लेकर अपने घुटनों के बल बैठकर चंद्रमा का अर्द्ध इस मंत्र के साथ करें।

श्री रोदार्णवसम्भुत अनिनेत्रसमुद्धव।
ग्रहाणार्ध्य शशाळेश रोहिणा सहिते मम्।।

इसका मतलब हुआ कि हे सागर से उत्पन्न देव हे अत्रिमुनि के नेत्र से समुभ्छुत हे चंद्र दे!  रोहिणी देवी के साथ मेरे द्वारा दि गए अर्द्ध को आप स्वीकार करें।  इसके बाद नंदननंतर वर्त को महा लक्ष्मी, वसुदेव, नंद, बलराम तथा यशोदा को फल के साथ अर्द्ध दे और प्रार्थना करें कि हे देव जो अनन्त, वामन. शौरि बैकुंठ नाथ पुरुषोत्म, वासुदेव, श्रृषिकेश, माघव, वराह, नरसिंह, दैत्यसूदन, गोविंद, नारायण, अच्युत, त्रिलोकेश, पीताम्बरधारी, नारा.ण चतुर्भुज, शंख चक्र गदाधर, वनमाता से विभूषित नाम लेकर कहे कि जिसे देवकी से बासुदेव ने उत्पन्न किया है जो संसार , ब्राह्मणो की रक्षा क् लिए अवतरित हुए है। उस ब्रह्मारूप भगवान श्री कृष्ण को मै नमन करती हूं।

इस तरह भगवान की पूजा के बाद घी-धूप से उनकी आरती करते हुए जयकारा लगाना चाहिए औऱ प्रसाद ग्रहण करनें का बाद ही जाना चाहिए।

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