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महावीर जयंती 2017: जानिए महावीर स्वामी के दिव्य सिद्धांतों के बारें में

महावीर जयन्ती का पर्व महावीर स्वामी के जन्म दिन चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। यह जैनों का सबसे प्रमुख पर्व है। भगवान महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थंकर थे जिनका जीवन ही उनका संदेश है। उनके सत्य, अहिंसा, के उपदेश एक खुली किताब की भांति

India TV Lifestyle Desk
Updated : April 08, 2017 14:15 IST

lord mahavira

lord mahavira

भगवान महावीर उस युग में पैदा हुए जब वैदिक क्रियाकांडों का बोलबाला था। धर्म के नाम पर अनेकानेक धारणाएं हमारी संस्कृति में रची बसीं थीं, जिनके कारण लोग स्वावलंबी न होकर ईश्वर के भरोसे बैठे रहते थे और शूद्र, उच्चवर्ग के अत्याचारों से कराह रहे थे।

तीर्थंकर महावीर ने प्रतिकूल वातावरण की कोई परवाह न कर साहस के साथ अपने सिद्धांतों को जनमानस के बीच रखा। उन्होंने ढोंग, पाखंड, अत्याचार, अनाचारत व हिंसा के नकारते हुए दृढ़तापूर्वक अहिंसक धर्म का प्रचार किया।

महावीर ने समाज को अपरिग्रह, अनेकांत और रहस्यवाद का मौलिक दर्शन समाज को दिया। कर्मवाद की एकदम मौखिक और वैज्ञानिक अवधारणा महावीर ने समाज को दी। उस समय भोग-विलास एवं कृत्रिमता का जीवन ही प्रमुख था, मदिरापान, पशुहिंसा आदि जीवन के सामान्य कार्य थे। बलिप्रथा ने धर्म के रूप को विकृत कर दिया था।

ऐसे बनाया भारत को चंदन

भगवान महावीर ने वर्षों से चली आ रही सामाजिक विसंगतियों को दूर कर भारत की मिट्टी को चंदन बनाया। महावीर के व्यवहार के बारें में कहा जाता है कि जो भी प्राप्त करना है, अपने पराक्रम से प्राप्त करो। किसी से मांग कर प्रार्थना करके, हाथ जोड़कर प्रसाद के रूप में धर्म प्राप्त नहीं किया जा सकता।

धर्म मांगने से नहीं, स्वयं धारण करने से मिलता है। जीतने से मिलता है। जीतने के लिए संघर्ष आवश्यक है। समर्पण जरूरी है। महावीर स्वामी कोई प्रचारक, उपदेशक, विचारक नहीं थे बल्कि उन्होंने अपने आचरण से अपने विचारों को कार्यरूप में परिणित किया था।

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