धर्म डेस्क: फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी से होलाष्टक शुरु हो गया है। जो कि फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक चलता है। इन दिनों में कोई भी शुभ काम करने की मनाही है। यह पूरे आठ दिन का होता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिकादहन किया जायेगा और उसके अगले दिन रंग खेला जायेगा। होली के साथ ही कल से होलाष्टक भी समाप्त हो जायेंगे, जिसके चलते विवाह आदि सभी शुभ कार्य अब फिर से शुरू हो जाते है।
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार होलाष्टक के दौरान सभी ग्रह उग्र या गर्म स्वभाव में रहते हैं जिसके कारण शुभ कार्यों को वर्जित माना जाता है। बुराई पर अच्छाई की इसे जीत के बाद ही होलिकादहन का यह त्योहार मनाया जाने लगा। होलिकादहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है। यह पूरे 8 दिन पा पर्व होता है।
इस साल होलाष्टक 23 फरवरी से शुरु हो गया है। जो कि 1 मार्च 2018 को होलिका दहन के साथ समाप्त हो जाएगा।
इन 8 दिनों में नव ग्रह होते है सबसे ज्यादा उग्र
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार जिस दिन से होलाष्टक शुरु होता है। उस दिन से नवग्रह बहुत ज्यादा उग्र हो जाते है। इसके कारण किसी भी अप्रिय घटना से बचने के लिए शादी, नामकरण, गृह प्रवेश, ग्रह निर्माण और मुंडन आदि शुभ काम करने की मनाही होती है। होलाष्टक में अष्टमी को चंद्रमा, नवमी को सूर्य, दशमी को शनि, एकादशी को शुक्र, द्वादशी को गुरु, त्रयोदशी को बुध, चतुर्दशी को मंगल और पूर्णिमा को राहू उग्र रहते हैं।
शास्त्रों के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि इन्हीं आठ दिनों में बालक प्रह्लाद की अनन्य नारायण भक्ति से नाराज हिरण्यकश्यप ने उनको अनेक प्रकार के कष्ट दिए थे और होलिका दहन वाले दिन उसको जीवित जलाने का प्रयास किया था, तभी से इन आठ दिनों को हिंदू धर्म में अशुभ माना जाता है।