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पति नहीं संतान की लंबी आयु के लिए होता हैं ये व्रत, करें ऐसे पूजा

कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई या फिर आठे कहते है। अहोई का अर्थ एक यह भी होता है अनहोनी को होनी बनाना। यह व्रत आमतौर पर करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से ठीक आठ दिन पहले पड़ता है। जानइे इसकी पूजा-विधि के बारें में..

India TV Lifestyle Desk
Updated : October 20, 2016 19:03 IST
ahoi astmi vrat- India TV Hindi
ahoi astmi vrat

हेल्थ डेस्क: कार्तिक माह को त्योहारों का मास कहा जाता है, क्योकि इस माह में करवा चौथ, अहोई अष्टमी, दीपावली , भाईदूजा जैसे हिंदू धर्म के मुख्य त्योहार होते है। कार्तिक मास के दो त्योहार महिलाओं के लिए बहुत ही खास होते है। एक करवा चौथ जो पति की दीर्घायु के लिए रखा जाता है और दूसरा अहोई अष्टमी व्रत जो अपनी संतान की दीर्घायु और सुख के लिए रखा जाता है। अहोई अष्टमी व्रत इस बार 23 अक्टूबर, रविवार को है।

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कार्तिक कृष्ण पक्ष की अष्टमी को अहोई या फिर आठे कहते है। अहोई का अर्थ एक यह भी होता है अनहोनी को होनी बनाना। यह व्रत आमतौर पर करवा चौथ के चार दिन बाद और दीपावली से ठीक आठ दिन पहले पड़ता है। मान्यता है कि इस व्रत को केवल संतान वाली महिलाएं ही रख सकती है, क्योंकि यह व्रत बच्चों के सुख के लिए रखा जाता है। इस व्रत में अहोई देवी की तस्वीर के साथ सेई और सेई के बच्चों के चित्र भी बनाकर पूजे जाते हैं।

 
अहोई व्रत पूजा-विधि

जिन महिलाओं को यह व्रत करना होता है वह दिनभर उपवास रखती हैं। शाम के समय श्रृद्धा के साथ दीवार पर अहोई की पुतली रंग भरकर बनाती हैं। उसी पुतली के पास सेई व सेई के बच्चे भी बनाती हैं। कई महिलाएं तो बाजार में बिकने वाली अहोई के बने रंगीन तस्वीर ले लेती है और उसी से पूजा करती है। आप भी ऐसा कर सकते है।

सूर्यास्त के बाद माता की पूजा शुरू होती है। इसके लिए सबसे पहले एक स्थान को अच्छी तरह साफ करके उसका चौक पूर लें। फिर एक लोटें में जल भर कलश की तरह एक जगह स्थापित कर दें। संतान की सुख की मन में भावना लेकर पूजा करते हुए अहोई अष्टमी के व्रत की कथा श्रृद्धाभाव से सुनें।

अगर आप चांदी का अहोई बनाकर पूजा करते है जिसे बोलचाल की भाषा में स्याऊ कहते है। इसमें आप चांदी के दो मोती डालकर विशेष पूजा करें। इसके लिए एक धागें में अहोई और दोनों चांदी के दानें डाल लें। इसके बाद अहोई की रोली, चावल और दूध से पूजा करें। साथ ही एक लोटे में जल भर कर सातिया बना लें।

एक कटोरी में हलवा तथा रुपए का बायना निकालकर रख दें और सात दाने गेहूं के लेकर अहोई माता की कथा सुनने के बाद अहोई की माला गले में पहन लें, जो बायना निकाल कर रखा है उसे सास की चरण छूकर उन्हें दे दें। इसके बाद चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन कर व्रत खोलें।

दीवाली के बाद किसी शुभ दिन इस अहोई माला को गले से उतार कर इसमें गुड का भोग और जल से आचमन करके और नमस्कार कर इस किसी अच्छी जगह पर रख दें। इसके बाद अपनी सास को रोली का तिलक लगा कर उनके हैर छूकर इस व्रत का उद्यापन कर सकते है।

अगली स्लाइड में पढ़े व्रत कथा

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