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शिवपुराण के अनुसार एक ऋषि के वरदान ने की थी द्रौपदी की चीरहरण से रक्षा

हिंदू धर्म का एक महापुराण महाभारत के बारें में आपने खुब सूना और पढ़ा होगा। उसी में एक अंश है द्रौपदी चीरहरण। आपने द्रौपदी के चीरहरण के बारे में तो खुब सुना होगा कि श्री कृष्ण भगवान से द्रौपदी की रक्षा की, लेकिन क्या आप इसके पीछे कि सच्चाई जानते है कि

India TV Lifestyle Desk
Updated : January 25, 2016 21:44 IST
draupadi chirharan
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धर्म डेस्क:  हिंदू धर्म का एक महापुराण महाभारत के बारें में आपने खुब सूना और पढ़ा होगा। उसी में एक अंश है द्रौपदी चीरहरण। आपने द्रौपदी के चीरहरण के बारे में तो खुब सुना होगा कि श्री कृष्ण भगवान से द्रौपदी की रक्षा की, लेकिन क्या आप इसके पीछे कि सच्चाई जानते है कि आखिर क्यों श्री कृष्ण ने द्रौपदी की रक्षा की थी।

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यह चीर हरण तब हुआ था जब युधिष्ठिर जुए में अपनी पत्नी द्रौपदी को हार गए, तब द्रौपदी पर दुर्योधन का अधिकार हो गया था। द्रौपदी का अपमान करने के लिए दुर्योधन ने उसे कौरवों की सभा में बुलाया। दुःशासन द्वारा द्रौपदी का चीरहरण करके का प्रयास किया गया, लेकिन द्रौपदी के वस्त्र को बढ़ाकर भगवान ने उसकी रक्षा की थी।

द्रौपदी को संकट के समय उसके अन्नत (कभी खत्म न होने वाले) हो जाने का वरदान ऋषि दुर्वासा ने दिया था। इसके पीछे एक कथा है जो शिवपुराण में बताई गी है इसके अनुसार भगवान शिव के अवतार ऋषि दुर्वासा एक बार स्नान करने के लिए नदी के तट पर गए थे। नदी का बहाव बहुत तेज होने के कारण ऋषि दुर्वासा के कपड़े नदी में बह गए।

ऋषि दुर्वासा से कुछ दूरी पर द्रौपदी भी स्नान कर रही थी। ऋषि दुर्वासा की मदद करने के लिए द्रौपदी ने अपनी वस्त्र में से एक टुकड़ा फाड़कर ऋषि को दे दिया था। इस बात से ऋषि द्रौपदी पर बहुत प्रसन्न हुए और संकट के समय उसके वस्त्र अन्नत हो जाने और उसकी रक्षा का वरदान दिया था। इसी वरदान के कारण कौरव सभा में दुःशासन द्वारा द्रौपदी की साड़ी खिंचने पर वह बढ़ती ही गई और उसके सम्मान की रक्षा हुई थी। जिसमें श्री कृष्ण ने सहायता की थी।

ऋषि दुर्वासा शिव के अवतार माने जाते है। यह ब्रह्मा के मानस पुत्र अत्रि और उनकी पत्नी अनुसुइया के पुत्र थे। जो कि तपस्या से खुश होकर भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों ने उन्हें दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। भगवान के ऐसा कहने पर अत्रि और अनुसूया ने तीनों देवों को अपने पुत्रों के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा।

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