दिल्ली जैसे शहर में 2 से 3 किलोमीटर पैदल चलना होता है तो मेरी जैसी लड़कियां आवागमन का साधन खोजती है, लेकिन दिल्ली से दूर राजस्थान में अपने घर से कुलदेवी मां क्षेमंकरी तक की 60 किलोमीटर की यात्रा 24 घंटे में पैदल पूरी कर लेना मेरे लिए एक यादगार अनुभव बन गया, हालांकि इस पैदल भक्तिमय कारवां में हमने 4 घंटे का विश्राम भी लिया था।
सिरोही स्थित अपने गांव कालंद्री से जालोर जिले के भीनमाल तक ये मेरी पहली पैदल यात्रा थी। मेरे लिए ये कुलदेवी मां क्षेमंकरी का हुक्म ही था कि 21 अक्टूबर को पापा के साथ घर से निकल पड़ी सूरज उगने से पहले ही। रास्ते में कहीं भी विश्राम नहीं किया और 9 किलोमीटर का सफर तय कर सीधे जा पहुंचे गुड़ा जहां मुझे मेरे ननिहाल नवारा से आ रहे करीब 150 लोगों के पैदल जत्थे में शामिल होना था। इस जत्थे में 5 साल के बच्चे से लेकर बड़े-बुजुर्ग सभी शामिल थे। सभी श्रद्धालु हाथ में लाल ध्वज लेकर पैदल जत्थे में शामिल हुए।
डीजे की धुन पर गुजराती और राजस्थानी भजनों का आनंद
डीजे के साथ सुबह 9 बजे गुड़ा से चल पड़ा अपना जत्था भीनमाल की ओर। रास्ते में गुजराती गीत और राजस्थानी भजनों पर हर किसी के पैर थिरक रहे थे। कोई टोली बना-बनाकर नाच रहा था तो कोई चलते हुए ही अपने हाथ ऊपर उठाकर मां के जयकारे लगा रहा था। माहौल एकदम भक्तिमय था।
गाजे-बाजे के साथ हमारा कारवां 1 बजे श्रीयादे माता मंदिर रामसीन जा पहुंचा। वहां खाना खाकर एक घंटे के आराम के बाद फिर अपनी यात्रा शुरू की। यह पैदल संघ पुनक गांव, श्रीयादे मंदिर रामसीन होते हुए रात को खेतलाजी मंदिर भरूडी पहुंचा, जहां रात्रि विश्राम किया। इसके बाद आधी रात को ही हमने पैदल यात्रा शुरू की और दूसरे दिन 22 अक्टूबर की सुबह 10 बजे हमारा जत्था भीनमाल मां कुलदेवी के प्रांगण में था। इस पैदल संघ को सफल बनाने के लिए नवारा के प्रजापति जाति के सोलंकी बंधु जुटे हुए थे।
क्षेमंकरी माताजी का मंदिर राजस्थान के जालोर जिले के भीनमाल मुख्य शहर से लगभग 2 किलोमीटर दूर भीनमाल-खारा मार्ग (खारी रोड के अंतिम छोर पर) पर स्थित एक डेढ़ सौ फुट ऊंची पहाड़ी की शीर्ष छोटी पर बना हुआ है। मंदिर तक पहुंचने के लिए पक्की सीढियां बनी हुई है। मां क्षेमंकरी को स्थानीय भाषा में क्षेमज, खीमज माता, खींवज आदि नामों से पुकारा व जाना जाता है। ये दुर्गा का ही अवतार है। यह न सिर्फ राजस्थान बल्कि गुजरात के भी कई हिन्दू धर्मावलंबी और जैन जातियों/गौत्रों की कुलदेवी है।
500 सीढ़ियों की चढ़ाई और दिखा मन मोह लेने वाला नजारा
पैदल यात्रा के दौरान वहां स्थित माली समाज धर्मशाला में हमारा रूकना हुआ। वहां स्नान किया और चाय पी। इसके बाद मैंने और पापा ने मां कुलदेवी की पूजन सामग्री ली और करीब 500 सीढ़ियों की चढ़ाई शुरू की। सीढ़ीयां चढ़ते हुए वहां का नजारा आपका मन मोह लेगा। खेत खलिहान, पेड़-पौधे और तालाब का जो नजारा दिखता है उसकी छटा ही निराली होती है।
60 किलोमीटर का सफर पैदल मार्च, जय हो माता रानी
ये मां कुलदेवी का चमत्कार कहों या उनके प्रति सच्ची श्रद्धा कि मुझे थकावट बिल्कुल भी महसूस नहीं हुई। जहां 2 किमी पैदल चलने का सोचकर ही चक्कर आने लगते है वहां 60 किमी. का ये सफर नाचते गाते कैसे तय हुआ पता भी नहीं चला। 12 बजे हम सीढ़ियां चढ़कर मां के दर्शन करने पहुंचे। लाइन में लगकर अपनी बारी का इंतजार किया और जैसे ही अपना नंबर आया सारा हाल मां कुलदेवी को कह दिया। उनकी मूरत देखकर ही आंखों में पानी आ गया मानो मां ने मेरे मन की सारी बातें जान ली।
मां के दर्शन कर हम सभी नीचे आए तब तक भोजन तैयार था। हमने भोजन किया और कुछ देर आराम करने के बाद बस के द्वारा अपने-अपने घरों की ओर रवाना हुए। माता की यह मेरी पहली पैदल यात्रा सफल हुई। हंसते-खेलते मैंने अपनी ये यात्रा पूरी की जो मुझे हमेशा याद रहेगी।
मां क्षेमंकरी का इतिहास:
आपको मां क्षेमकरी का इतिहास तो पता ही होगा और माता रानी की महिमा से भी आप अवगत होंगे लेकिन फिर भी आपके साथ मां की महिता और उनसे जुड़ी कहानी आपके साथ एक बार फिर से शेयर करना मैं जरूरी समझती हूं।
हमारी लोकगाथाओं और श्रीमाल पुराण में क्षेमंकरी दैवी की उत्पत्ति के विवरण के अनुसार शताब्दियों पूर्व इस क्षेत्र में उत्तमौजा नामक एक दैत्य रहता था। जो रात्री के समय बड़ा आतंक मचाता था। राहगीरों को लूटने, मारने के साथ ही वह स्थानीय निवासियों के पशुओं को मार डालता, जलाशयों में मरे हुए मवेशी डालकर पानी दूषित कर देता, पेड़ पौधों को उखाड़ फैंकता, उसके आतंक से भीनमाल वासी आतंकित थे। उससे मुक्ति पाने हेतु क्षेत्र के निवासी श्रीमाली ब्राह्मणों के साथ शहर के ऋषि गौतम के आश्रम में सहायता हेतु पहुंचे और उस दैत्य के आतंक से बचाने हेतु ऋषि गौतम से याचना की।
गौतम ऋषि ने उनकी याचना, प्रार्थना पर सावित्री मंत्र से अग्नि प्रज्ज्वलित की, जिसमें से शक्ति की देवी प्रकट हुई। ऋषि गौतम ने देवी से प्रार्थना की, देवी ने क्षेत्रवासियों को उस दैत्य के आतंक से मुक्ति दिलाने हेतु पहाड़ को उखाड़कर उस दैत्य उत्तमौजा के ऊपर रख दिया।
कहा जाता है कि उस दैत्य को वरदान मिला हुआ था वह कि किसी अस्त्र-शस्त्र से नहीं मरेगा। अतः देवी ने उसे पहाड़ (माताजी री भाकरी) के नीचे दबा दिया। लेकिन भीनमालवासी इतने से संतुष्ट नहीं थे, उन्हें दैत्य की पहाड़ के नीचे से निकल आने आशंका थी, इसलिए उन्होंने देवी से प्रार्थना की कि वह उस पर्वत पर बैठ जाये जहां नीचे दैत्य दबा हुआ है। इस प्रकार देवी ने उस पहाड़ी पर अपनी चरण पादुकाएं रख दी और लोगों ने देवी की आराधना शुरू कर दी। इस प्रकरण में देवी ने लोगों का भला (क्षेम) किया था फलस्वरूप देवी को "क्षेमंकरी" अर्थात भला करने वाली के नाम से जाना जाने लगा।
क्षेमंकरी देवी की चरण पादुका के स्थान पर क्षेमकंरी मंदिर और प्रतिमा की स्थापना राजा वर्मलात ने विक्रम संवत 682 में की थी। वर्तमान में जो प्रतिमा लगी है वह सन्1935 में स्थापित की गई है, जो चार भुजाओं से युक्त है। मंदिर के सामने व पीछे विश्राम शाला बनी हुई है। मंदिर में नगाड़े रखे होने के साथ भारी घंटा लगा है। मंदिर का प्रवेश द्वार मध्यकालीन वास्तुकला से सुसज्जित भव्य व सुन्दर दिखाई देता है।
मंदिर में स्थापित देवी प्रतिमा के दार्इं और काला भैरव व गणेश जी तथा बाईं तरफ गोरा भैरूं और अम्बाजी की प्रतिमाएं स्थापित है। आसन पीठ के बीच में सूर्य भगवान विराजित है।
कैसे जाए-
यहां तक पहुंचना बहुत आसान है। यह मंदिर राजस्थान के जालोर जिले के भीनमाल में स्थित है। आप बाई एयर या ट्रेन से भी जा सकते हैं। नज़दीकी रेलवे स्टेशन मारवाड़ भीनमाल है जहां उतकर आप बस ले सकते है और नजदीकी एयरपोर्ट जोधपुर है। जोधपुर से भीनमाल की दूरी 255 किमी. है। सड़कें अच्छी हैं लेकिन रास्ता थोड़ा लंबा है।