ऐसे करें करवा चौथ में पूजा
सबसे पहलें सूर्योदय से पहले स्नान कर के व्रत रखने का संकल्प लें और सास दृारा भेजी गई सरगी खाएं। सरगी में मिठाई, फल, सेंवई, पूड़ी और साज-श्रृंगार का समान होता है। सरगी में प्याज और लहसुन से बना भोजन न खाएं। सरगी करने के बाद करवा चौथ का निर्जल व्रत शुरु हो जाता है। मां पार्वती, महादेव शिव व गणेश जी का ध्यान पूरे दिन अपने मन में करती रहें। इसके बाद दीवार पर गेरू से फलक बनाकर पिसे चावलों के घोल से करवा चित्रित करें। इस चित्रित करने की कला को करवा धरना कहा जाता है जो कि बड़ी पुरानी परंपरा है। अब आठ पूरियों की अठावरी बनाएं।
करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। मां गौरी की गोद में गणेश जी का स्वरूप बिठाए। इन स्वरूपों की पूजा संध्याकाल के समय पूजा करने के काम आती है। माता गौरी को लकड़ी के सिंहासन पर विराजें और उन्हें लाल रंग की चुनरी पहना कर अन्य सुहाग,श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। फिर उनके सामने जल से भरा कलश रखें। भेंट देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवे पर स्वास्तिक बनाएं। गौरी गणेश के स्वरूपों की पूजा करते हुए इस मंत्र का जाप करें-
'नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं संतति शुभाम्। प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरवल्लभे॥'
पूजा के बाद करवा चौथ की कथा सुननी चाहिए तथा चंद्रमा को अर्घ्य देकर छलनी से अपने पति को देखना चाहिए। पति के हाथों से ही पानी पीकर व्रत खोलना चाहिए। इस प्रकार व्रत को सोलह या बारह साल तक करके उद्यापन कर देना चाहिए।
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