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Karwa Chauth 2020: इस कथा को सुने बिना पूरा नहीं होता करवा चौथ का व्रत, होगी अखंड सौभाग्य की प्राप्ति

करवा चौथ के दिन व्रत रखने वाली महिलाओं को पूजा-पाठ के साथ व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि इससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। जानें पूरी व्रत कथा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : November 04, 2020 19:26 IST
Karwa Chauth 2020: इस कथा को सुने बिना पूरा नहीं होता करवा चौथ का व्रत
Image Source : INDIA TV Karwa Chauth 2020: इस कथा को सुने बिना पूरा नहीं होता करवा चौथ का व्रत

कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि और बुधवार का दिन है। चतुर्थी तिथि आज पूरा दिन पूरी रात पार कर अगली भोर 5 बजकर 15 मिनट तक रहेगी | कार्तिक कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी उम्र के लिये करवाचौथ का व्रत किया जाता है और चांद देखकर व्रत का पारण किया जाता है। अतः आज  करवा चौथ का व्रत किया जायेगा। आज के दिन चन्द्रोदय शाम 7 बजकर 57 मिनट पर होगा।  करवाचौथ के इस व्रत को 'करक चतुर्थी' या 'दशरथ चतुर्थी' के नाम से भी जाना जाता है।

करवा चौथ के दिन माता पार्वती और गणेश जी की पूजा विधि-विधान के साथ की जाती है। जिसके बाद करवा चौथ की व्रत कथा सुनना अनिवार्य माना जाता है। मान्यता है कि इससे अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। करवा चौथ की 2 कथाएं प्रचलित है। पढ़ें पूरी कथा।  

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करवा चौथ की पहली व्रत कथा

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। सेठानी समेत उसकी बहुओं और बेटी ने करवा चौथ का व्रत रखा था। रात्रि को साहूकार के लड़के भोजन करने लगे तो उन्होंने अपनी बहन से भोजन के लिए कहा। इस पर बहन ने जवाब दिया- "भाई! अभी चांद नहीं निकला है, उसके निकलने पर अर्घ्‍य देकर भोजन करूंगी।" बहन की बात सुनकर भाइयों ने एक काम किया कि नगर से बाहर जा कर अग्नि जला दी और छलनी ले जाकर उसमें से प्रकाश दिखाते हुए उन्‍होंने बहन से कहा- "बहन! चांद निकल आया है। अर्घ्‍य देकर भोजन कर लो।"

यह सुनकर उसने अपने भाभियों से कहा, "आओ तुम भी चन्द्रमा को अर्घ्‍य दे लो।" परन्तु वे इस कांड को जानती थीं, उन्होंने कहा- "बाई जी! अभी चांद नहीं निकला है, तेरे भाई तेरे से धोखा करते हुए अग्नि का प्रकाश छलनी से दिखा रहे हैं।" भाभियों की बात सुनकर भी उसने कुछ ध्यान न दिया और भाइयों द्वारा दिखाए गए प्रकाश को ही अर्घ्‍य देकर भोजन कर लिया। इस प्रकार व्रत भंग करने से गणेश जी उस पर अप्रसन्न हो गए। इसके बाद उसका पति सख्त बीमार हो गया और जो कुछ घर में था उसकी बीमारी में लग गया।

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जब उसने अपने किए हुए दोषों का पता लगा तो उसने पश्चाताप किया गणेश जी की प्रार्थना करते हुए विधि विधान से पुनः चतुर्थी का व्रत करना आरम्भ कर दिया। श्रद्धानुसार सबका आदर करते हुए सबसे आशीर्वाद ग्रहण करने में ही मन को लगा दिया। इस प्रकार उसकी श्रद्धा भक्ति सहित कर्म को देखकर भगवान गणेश उस पर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवन दान दे कर उसे आरोग्य करने के पश्चात धन-संपत्ति से युक्त कर दिया। इस प्रकार जो कोई छल-कपट को त्याग कर श्रद्धा-भक्ति से चतुर्थी का व्रत करेंगे उन्‍हें सभी प्रकार का सुख मिलेगा।

दूसरी पौराणिक व्रत कथा

पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था।

एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।

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पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची।

उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा की मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।

करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको शाप दूंगी और नष्ट कर दूंगी।

करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया।

तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरी भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपनी पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।

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