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Karva Chauth 2017: इस समय होगा चांद का दीदार, इस विधि से पूजा कर सुनें कथा

माना जाता है कि भगवान को अर्ध्य देने से पहले मां गौरी, शिव, गणेश और कार्तिकेय की अराधना करने का विधान है।पूजा के बाद मिट्टी के करवे में चावल, उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री रखकर सास को दी जाती है। जानिए पूजा विधि और कथा, सुभ मुहूर्त के बारें में

Edited by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: October 07, 2017 19:50 IST

karva chauth

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गौरी को बैठाने के बाद उस पर लाल रंग की चुनरी चढ़ाए इसके बाद माता का भी सोलह श्रृंगार करें। वायना (भेंट) देने के लिए मिट्टी का टोंटीदार करवा लें। करवा में गेहूं और ढक्कन में शक्कर का बूरा भर दें। उसके ऊपर दक्षिणा रखें। रोली से करवा पर स्वस्तिक बनाएं। गौरी-गणेश और चित्रित करवा की परंपरानुसार पूजा करें। सुहागनें भगवान शिव और मां पार्वती की आराधना करें और करवे में पानी भरकर पूजा करें। इस दिन सुहागिनें निर्जला व्रत रखती है और पूजन के बाद कथा पाठ सुनती या पढ़ती हैं। इसके बाद चंद्र दर्शन करने के बाद ही पानी पीकर व्रत खोलती हैं।

कथा
एक साहूकार के सात लड़के और एक लड़की थी। एक बार कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को सेठानी के साथ उसकी सातों बहुओं और बेटी ने भी करवा चौथ का व्रत रखा। रात्रि के समय जब साहूकार के सभी लड़के भोजन करने बैठे तो उन्होंने अपनी बहन से भी भोजन कर लेने को कहा। इस पर बहन ने कहा- भाई, अभी चांद नहीं निकला है। चांद के निकलने पर उसे अर्घ्य देकर ही मैं भोजन करूंगी।

साहूकार के बेटे अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे, उन्हें अपनी बहन का भूख से व्याकुल चेहरा देख बेहद दुख हुआ। साहूकार के बेटे नगर के बाहर चले गए और वहां एक पेड़ पर चढ़ कर अग्नि जला दी। घर वापस आकर उन्होंने अपनी बहन से कहा- देखो बहन, चांद निकल आया है। अब तुम उन्हें अर्घ्य देकर भोजन ग्रहण करो। साहूकार की बेटी ने अपनी भाभियों से कहा- देखो, चांद निकल आया है, तुम लोग भी अर्घ्य देकर भोजन कर लो। ननद की बात सुनकर भाभियों ने कहा- बहन अभी चांद नहीं निकला है, तुम्हारे भाई धोखे से अग्नि जलाकर उसके प्रकाश को चांद के रूप में तुम्हें दिखा रहे हैं।

साहूकार की बेटी अपनी भाभियों की बात को अनसुनी करते हुए भाइयों द्वारा दिखाए गए चांद को अर्घ्य देकर भोजन कर लिया। इस पवजह से करवा चौथ का व्रत भंग हो गया और विघ्नहर्ता भगवान श्री गणेश साहूकार की लड़की पर अप्रसन्न हो गए। गणेश जी की अप्रसन्नता के कारण उस लड़की का पति बीमार पड़ गया और घर में बचा हुआ सारा धन उसकी बीमारी में लग गया।

साहूकार की बेटी को जब अपनी गलती का पता लगा तो उसे बहुत पश्चाताप हुआ। उसने गणेश जी से क्षमा मांगी और फिर से विधि-विधान पूर्वक चतुर्थी का व्रत शुरू कर दिया। उसने उपस्थित सभी लोगों का श्रद्धानुसार आदर किया और उनसे आशीर्वाद ग्रहण किया। इस प्रकार उस लड़की की श्रद्धा-भक्ति को देखकर एकदंत भगवान गणेश जी उसपर प्रसन्न हो गए और उसके पति को जीवनदान दिया। उसे सभी प्रकार के रोगों से मुक्त करके धन, संपत्ति और वैभव से युक्त कर दिया।

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