अयोध्या और श्रीकृष्ण के संबंध को लेकर धर्म के कुछ जानकार कहते हैं कि वैसे तो हर भक्त यमुना से कन्हैया के लगाव को जानता है। लेकिन ये बहुत कम लोगों को पता है कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण जब राम की जन्मभूमि अयोध्या से गुजरे तो सरयू मइया का दर्शन करना नहीं भूले। कहा गया है जग में सुंदर दो नाम। चाहे कृष्ण कहो या राम। रामावतार पहले हुआ था और फिर कृष्णावतार। जब भगवान ने कृष्ण का अवतार लिया तो पहले अवतार की जन्मभूमि पर आए थे। यहां मां सरयू का दर्शन किया। कनक भवन में रुके। फिर दशरथ गद्दी में विराजमान हुए।
अयोध्या के कथावाचक डॉ. गिरीश पति त्रिपाठी के मुताबिक भगवान कृष्ण कुंभ स्नान के बाद अयोध्या आए थे। इस कहानी के पीछे वो कनक भवन में मौजूद शिलालेख का हवाला देते हैं। गिरीश पति त्रिपाठी का दावा है कि भगवान कृष्ण ने ही कनक भवन का जीर्णोद्धार करवाया था।
कब आएं भगवान कृष्ण अयोध्या
भगवान कृष्ण कुंभ स्नान के बाद अयोध्या पधारे थे। ऐसा कनक भवन में लगे शिलालेख में जिक्र है भगवान कृष्ण ने कनक भवन सरकार के दर्शन किए। भगवान कृष्ण ने कनक भवन का जीर्णोद्धार भी करवाया था।
कनक भवन, दशरथ गद्दी और सरयू के दर्शन के अलावा श्रीकृष्ण अयोध्या में और कहां-कहां गए? धर्मग्रंथों में इसके बारे में क्या-क्या लिखा हुआ है? इन सवालों पर धर्म के जानकार क्या कहते हैं? उसे
धर्मग्रंथों में क्या लिखा है? भगवान कृष्ण अयोध्या में कितने दिन रुके?
एक दिन और एक रात वास किया था। 24 घंटे रुके थे। संतों के मुंह से सुना है। उनके चिह्न भी यहां हैं।
रामलला के मुख्य पुजारी की मानें तो भगवान राम और कृष्ण में कोई अंतर नहीं है। आप राम कहिए या कृष्ण। दोनों का संबंध शाश्वत है। दोनों भगवान विष्णु के ही अवतार हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि दोनों ने दो युग में अवतार लिया।
भगवान कृष्ण और राम में शाश्वत संबंध है।
डॉ. राम मनोहर लोहिया अवध यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. मनोज दीक्षित भी मानते हैं कि अयोध्या की पहचान धर्म नगरी की है। इस नगरी की पहचान भगवान राम की जन्मभूमि के तौर पर रही है। लेकिन अगर इस नगरी का रिश्ता भगवान कृष्ण से भी है तो इसके धार्मिक सबूतों का पूरा अध्ययन होना चाहिए।
हम अयोध्या को धार्मिक नगरी मानते हैं। किसी एक धर्म से जोड़कर इसे नहीं देखते। सारे धर्म यहां पाए जाते हैं। इससे ज्यादा आनंद का विषय और नहीं हो सकता कि भगवान राम और भगवान कृष्ण दोनों का ही पदार्पण इस धरती पर हुआ हो। अगर ऐसे प्रमाण मिलते हैं तो ये अयोध्या के लिए बहुत ही फायदेमंद होगा।
बहरहाल, मान्यताओं की बुनियाद पर ईश्वर में आस्था रखने वालों का अटूट विश्वास है कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम की जन्मभूमि पर मथुरावाले मुरली मनोहर के भी कदम पड़े थे। हालांकि, इसको लेकर विज्ञान का नजरिया जाहिर तौर पर अलग हो सकता है।