चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और दिन शुक्रवार है | चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को कामदा एकादशी व्रत मनाया जाता है | कुछ पुराणों के अनुसार कामदा एकादशी को उपवास करने से श्रेष्ठ संतान प्राप्त होती है।
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार इस एकादशी को लेकर एक पेंच है कि- ये एकादशी चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी है और हेमाद्रि के अनुसार जिनको पहले से पुत्र हो, उन्हें चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी पर उपवास नहीं करना चाहिए। एकादशी का व्रत नित्य और काम्य दोनों है। नित्य का मतलब है, जो व्रत ग्रहस्थ के लिये करना जरूरी हो और काम्य व्रत का मतलब है जो किसी वांछित वस्तु की प्राप्ति के लिये किया जाये। यहां साफ-साफ समझ लेना चाहिए कि दोनों पक्षों की एकादशी पर व्रत केवल उनके लिये नित्य है, जो हस्थ नहीं है। ग्रहस्थों के लिये केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी पर ही नित्य है, कृष्ण पक्ष में नहीं । सवाल ये है कि ये एकादशी क्या है और इसका व्रत क्यों करना चाहिए? क्या एकादशी का व्रत करके हमें मिल सकता है- प्यार, पैसा और कामयाबी? क्या एकादशी का व्रत करके हम मौत का गला घोंट सकते हैं? क्या एकादशी का व्रत करके हम शौहरत को बोतल में कैद कर सकते हैं? क्या एकादशी का व्रत करके हम प्रोमोशन या मनचाही पोस्टिंग हासिल कर सकते हैं? क्या ये व्रत करके हम अपने बच्चे की जिंदगी बेहतर बना सकते हैं? इन सारे सवालों का सिर्फ एक ही जबाब है- “करता करे ना कर सके, वो इस व्रत से होय”।
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कामदा एकादशी शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ: 22 अप्रैल रात 11 बजकर 37 मिनट से शुरू
एकादशी तिथि समाप्त: 23 अप्रैल रात 9 बजकर 47 मिनट तक
कामदा एकादशी पूजा विधि
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें फिर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। घी का दीप अवश्य जलाए। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।
इस दौरान 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। साथ ही भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।
एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये। अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।
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कामदा एकादशी कथा
प्राचीन काल में भोगीपुर नाम का एक नगर था। वहां राजा पुण्डरीक राज्य करते थे। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से ललिता और ललित में अत्यंत स्नेह था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नाम के नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को बड़ा क्रोध आया और ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया।
ललिता को जब यह पता चला तो उसे अत्यंत खेद हुआ। वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर प्रार्थना करने लगी। श्रृंगी ऋषि बोले, 'हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को देने से वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।' ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ।