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आज कामदा एकादशी, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

 चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकदाशी व्रत करने का विधान हैं | लिहाजा आज कामदा एकादशी व्रत किया जायेगा है | कहते हैं कामदा एकादशी का व्रत रखने वाले की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं |

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : April 04, 2020 6:52 IST
kamda ekadashi
Image Source : INSTRAGRAM//LORDVISHNU_SE kamda ekadashi

चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और शनिवार का दिन है | चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी को कामदा एकदाशी व्रत करने का विधान हैं | लिहाजा आज कामदा एकादशी व्रत किया जायेगा है | कहते हैं कामदा एकादशी का व्रत रखने वाले की सभी इच्छाएं पूरी होती हैं | एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति विधि-विधान से एकादशी का व्रत और रात्रि जागरण करता है उसे वर्षों तक तपस्या करने का पुण्य प्राप्त होता है। इसके साथ ही प्रेत योनि से निजात मिलता है। इस व्रत से कई पीढियों द्वारा किए गए पाप भी दूर हो जाते है।

कामदा एकादशी का शुभ मुहूर्त

तिथि प्रारम्भ:  भोर 12 बजकर 59 मिनट 
तिथि समाप्त: रात 10 बजकर 30 मिनट तक 
 
कामदा एकादशी पूजा विधि
ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें फिर व्रत का संकल्प लें। इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें। घी का दीप अवश्य जलाए। जाने-अनजाने में आपसे जो भी पाप हुए हैं उनसे मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु से हाथ जोड़कर प्रार्थना करें।

इस दौरान 'ऊं नमो भगवते वासुदेवाय' मंत्र का जप निरंतर करते रहें। एकादशी की रात्रि प्रभु भक्ति में जागरण करे, उनके भजन गाएं। साथ ही भगवान विष्णु की कथाओं का पाठ करें। द्वादशी के दिन उपयुक्त समय पर कथा सुनने के बाद व्रत खोलें।

एकादशी व्रत दो दिनों तक होता है लेकिन दूसरे दिन की एकादशी का व्रत केवल सन्यासियों, विधवाओं अथवा मोक्ष की कामना करने वाले श्रद्धालु ही रखते हैं। व्रत द्वाद्शी तिथि समाप्त होने से पहले खोल लेना चाहिए लेकिन हरि वासर में व्रत नहीं खोलना चाहिए और मध्याह्न में भी व्रत खोलने से बचना चाहिये।  अगर द्वादशी तिथि सूर्योदय से पहले समाप्त हो रही हो तो सूर्योदय के बाद ही पारण करने का विधान है।

कामदा एकादशी कथा
प्राचीन काल में भोगीपुर नाम का एक नगर था। वहां राजा पुण्डरीक राज्य करते थे। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर तथा गंधर्व वास करते थे। उनमें से ललिता और ललित में अत्यंत स्नेह था। एक दिन गंधर्व ललित दरबार में गान कर रहा था कि अचानक उसे पत्नी ललिता की याद आ गई। इससे उसका स्वर, लय एवं ताल बिगड़ने लगे। इस त्रुटि को कर्कट नाम के नाग ने जान लिया और यह बात राजा को बता दी। राजा को बड़ा क्रोध आया और ललित को राक्षस होने का श्राप दे दिया।

ललिता को जब यह पता चला तो उसे अत्यंत खेद हुआ। वह श्रृंगी ऋषि के आश्रम में जाकर प्रार्थना करने लगी। श्रृंगी ऋषि बोले, 'हे गंधर्व कन्या! अब चैत्र शुक्ल एकादशी आने वाली है, जिसका नाम कामदा एकादशी है। कामदा एकादशी का व्रत कर उसके पुण्य का फल अपने पति को देने से वह राक्षस योनि से मुक्त हो जाएगा।' ललिता ने मुनि की आज्ञा का पालन किया और एकादशी व्रत का फल देते ही उसका पति राक्षस योनि से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप को प्राप्त हुआ।

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