भाद्रपद कृष्ण पक्ष की तृतीया को कज्जली या कजरी तीज के नाम से जाना जाता है। लिहाजा 25 अगस्त को कज्जली तीज का त्योहार मनाया जायेगा। कजली या कजरी का अर्थ काले रंग से है। चूंकि इस दौरान आसमान में काली घटाएं छायी रहती हैं, इसीलिए भाद्रपद महीने की तृतीया को कज्जली तीज के रूप में मनाया जाता है। इस दिन श्री विष्णु की पूजा की जाती है। अतः भगवान श्री विष्णु की पूजा-अर्चना की जायेगी।
मान्यताओं में इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के भवानी स्वरूप की भी पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन व्रत करने का भी विधान है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग के लिये व्रत करती हैं, जबकि कुंवारी कन्याएं मनाचाहा वर पाने के लिये ये व्रत करती हैं। सारे दिन व्रती रहकर शाम को चन्द्रोदय होने पर इस व्रत का पारण किया जाता है। इस दिन रिश्ते में अपने से बड़ी महिलाओं को कुछ भेंट करने की भी रीत है।
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कजरी तीज का शुभ मुहूर्त
तृतीया तिथि प्रारंभ - 24 अगस्त शाम 4 बजकर 5 मिनट से
तृतीया तिथि समाप्त - 25 अगस्त शाम 4 बजकर 18 मिनट तक
चन्द्रोदय: 25 अगस्त रात 8 बजकर 26 मिनट पर
कजरी तीज की पूजा विधि
हिंदू धर्म के अनुसार इस दिन नीमड़ी माता की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद हरे रंग के साफ कपड़े पहने। यह व्रत पूरे दिन व्रत रखते हैं। पूजन के लिए मिट्टी य़ा फिर गाय के गोबर से तालाब बनाएं. उसमें नीम की टहनी डालकर उसमें चुनरी रखकर नीमड़ी माता की स्थापना करें। इस दिन निर्जला व्रत रखते हुए 16 श्रृंगार कर माता का पूजन करें। नीमड़ी माता को हल्दी, मेहंदी, सिंदूर, चूड़िया, लाल चुनरी, सत्तू और माल पुआ चढ़ाए। शाम को चंद्रोदय के बाद व्रत खोला जाता है। कजरी तीज के दिन जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाये जाते हैं। इस दिन सुहागने दान करती हैं। इसके साथ ही पूजा स्थल में घी का दीपक जलाकर मां पार्वती और भगवान शिव के मंत्रों का जाप किया जाता है।
चंद्रमा को अर्ध्य देने की विधि
कजरी तीज की शाम को पूजा करने के बादत चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता है। इसके लिए चंद्रमा को रोली, अक्षत और मौली अर्पित करें। इसके बाद गेंहू के दाने और चांदी की अंगूठी को हाथ लेकर चंद्रमा को अर्ध्य दे दें। चंद्रोदय के बाद भोजन करके व्रत तोड़ा जाता है।