व्रत कथा
गंधर्वों के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था। वह बहुत दयालु एवं धर्मनिष्ठ था। परंतु उसका मन राज-पाट में नहीं लगता था। अत: राज्य का भार अपने भाइयों पर छोड़कर वह स्वयं वन में पिता की सेवा करने चला गया। एक दिन वन में जीमूतवाहन को एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखाई दी। उन्होंने वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछा तो उसने बताया कि मैं नागवंश की स्त्री हूं तथा मेरा एक ही पुत्र है। नागों द्वारा रोज एक नाग पक्षीराज गरुड़ को भोजन के लिए दिया जाता है। आज मेरे पुत्र शंखचूड़ की बलि का दिन है।
उस स्त्री की व्यथा सुनकर जीमूतवाहन ने कहा कि मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा। वचन देकर जीमूतवाहन स्वयं गरुड़ को बलि देने के लिए चुने गए स्थान पर लेट गए। नाग के स्थान पर जीमूतवाहन को देखकर गरुड़ आश्चर्य में पड़ गए और जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछा। जीमूतवाहन ने उन्हें सारी बात सच-सच बता दी। जीमूतवाहन की बहादुरी और परोपकार की भावना से प्रभावित होकर गरुड़देव उन्हें तथा नागों को जीवनदान दिया। इस प्रकार जीमूतवाहन के साहस से नाग जाति की रक्षा की।