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Jaya Ekadashi 2021: जया एकादशी के दिन बन रहा दुर्लभ योग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी होने के कारण इस एकादशी का व्रत ग्रहस्थ और जो ग्रहस्थ नहीं है, दोनों कर सकते हैं ।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : February 23, 2021 10:57 IST
Jaya Ekadashi 2021: जया एकादशी के दिन बन रहा दुर्लभ योग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा
Image Source : INSTAGRAM/HINDUTVA_18 Jaya Ekadashi 2021: जया एकादशी के दिन बन रहा दुर्लभ योग, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और व्रत कथा

माघ महीने की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को जया एकादशी का व्रत करने का विधान है। लिहाजा आज जया एकादशी का व्रत किया जायेगा। शास्त्रों में यह एकादशी बड़ी ही फलदायी बतायी गई है । इस एकादशी में भगवान विष्णु के निमित्त व्रत करने और उनकी पूजा करने का विधान है। साथ ही इस दिन श्री लक्ष्मी की पूजा करने से घर की धन-सम्पदा में वृद्धि होती है।

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार शुक्ल पक्ष की एकादशी होने के कारण इस एकादशी का व्रत ग्रहस्थ और जो ग्रहस्थ नहीं है, दोनों कर सकते हैं । दरअसल गृहस्थ को केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी में व्रत करना चाहिए। जबकि जो ग्रहस्थ नहीं है, उनके लिये कृष्ण और शुक्ल, दोनों पक्षों की एकादशी नित्य है। ब्रह्मवैवर्त पुराण और पद्मपुराण में आया है कि गृहस्थ केवल आषाढ़ शुक्ल पक्ष की शयनी और कार्तिक शुक्ल पक्ष की बोधनी एकादशी के मध्य पड़ने वाली कृष्ण पक्ष की एकादशी कर सकते हैं। बाकी केवल शुक्ल पक्ष की एकादशी ही कृत्य है। लिहाजा आज जो ग्रहस्थ हैं और जो ग्रहस्थ नहीं हैं, दोनों को यह व्रत करना चाहिए।

बन रहा है संयोग

एकादशी को पूरा दिन पार कर भोर 4 बजकर 34 मिनट तक आयुष्मान योग रहेगा। आयुष्मान योग के दौरान किये गये कार्य लंबे समय तक शुभ फल देते हैं। साथ ही दोपहर 12 बजकर 32 मिनट से पुनर्वसु नक्षत्र भी शुरू हो जायेगा। आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार एकादशी के दिन मंगलवार, द्वादशी तिथि और पुनर्वसु नक्षत्र का संयोग बन रहा है। जिसके कारण  त्रिपुष्कर योग है। यह योग शाम 6 बजकर 6 मिनट से शुरू होकर अगले दिन सूर्योदय तक रहेगा।  

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जया एकादशी का शुभ मुहूर्त

माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और दिन मंगलवार है। एकादशी तिथि 23 फरवरी को शाम 6 बजकर 6 मिनट तक रहेगी।

जया एकादशी व्रत पूजा विधि

एकादशी के दिन सूर्योदय के समय उठकर सही कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें और इसके बाद धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें। संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ व सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें।इस प्रकार नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।

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जया एकादशी की कथा
भगवान के बताया कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष आये थे। इसी दौरान एक कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गयी। अपने प्रबल आर्कघण के चलते वो सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। ऐसा ही हुआ और माल्यवान अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक कर सुर ताल भूल गया। इन दोनों की भूल पर इन्द्र क्रोधित हो गए और दोनों को शाप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हों।

शाप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। इस तरह अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। वे पहले से भी सुन्दर हो गए और पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया। जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित हो कर उनसे मुक्ति कैसे मिली यह पूछा। तब उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। इन्द्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं अत: स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।

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