आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार प्रत्येक महीने में दो बार एकादशी की तिथि आती है। एक कृष्ण पक्ष की एकादशी व दूसरी शुक्ल पक्ष की एकादशी| दोनों एकादशियों का अपना महत्व एवं फल होता है। इस तरह प्रत्येक वर्ष यानि बारह महीने में चौबीस एकादशियां होती हैं और जिस साल ज्यादा माह अर्थात मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर छब्बीस हो जाती है। इन एकादशियों की तिथियों को एकादशी व्रत किये जाने का अपना अलग ही महत्व है। माघ मास में पड़ने वाली एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह एकादशी सभी पापों को हरने वाली और उत्तम कही गई है। पवित्र होने के कारण यह उपवासक के सभी पापों का नाश करती है और इसका प्रत्येक वर्ष व्रत करने से मनुष्यों को भोग और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
जया एकादशी का शुभ मुहूर्त
माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि और बुधवार का दिन है| एकादशी तिथि 5 फरवरी को रात 9 बजकर 31 मिनट तक रहेगी|
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जया एकादशी व्रत पूजा विधि
एकादशी के दिन सूर्योदय के समय उठकर सही कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद भगवान विष्णु का मनन करते हुए व्रत का संकल्प लें और इसके बाद धूप, दीप, चंदन, फल, तिल, एवं पंचामृत से भगवान विष्णु की पूजा करें। पूरे दिन व्रत रखें। संभव हो तो रात्रि में भी व्रत रखकर जागरण करें। अगर रात्रि में व्रत संभव न हो तो फलाहार कर सकते हैं। द्वादशी तिथि पर ब्राह्मणों को भोजन करवाकर उन्हें जनेऊ व सुपारी देकर विदा करें फिर भोजन करें।इस प्रकार नियमपूर्वक जया एकादशी का व्रत करने से महान पुण्य फल की प्राप्ति होती है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, जो जया एकादशी का व्रत करते हैं उन्हें पिशाच योनि में जन्म नहीं लेना पड़ता।
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जया एकादशी की कथा
भगवान के बताया कि एक बार नंदन वन में उत्सव चल रहा था। इस उत्सव में सभी देवता, सिद्ध संत और दिव्य पुरूष आये थे। इसी दौरान एक कार्यक्रम में गंधर्व गायन कर रहे थे और गंधर्व कन्याएं नृत्य कर रही थीं। इसी सभा में गायन कर रहे माल्यवान नाम के गंधर्व पर नृत्यांगना पुष्पवती मोहित हो गयी। अपने प्रबल आर्कघण के चलते वो सभा की मर्यादा को भूलकर ऐसा नृत्य करने लगी कि माल्यवान उसकी ओर आकर्षित हो जाए। ऐसा ही हुआ और माल्यवान अपनी सुध बुध खो बैठा और गायन की मर्यादा से भटक कर सुर ताल भूल गया। इन दोनों की भूल पर इन्द्र क्रोधित हो गए और दोनों को श्राप दे दिया कि वे स्वर्ग से वंचित हो जाएं और पृथ्वी पर अति नीच पिशाच योनि को प्राप्त हों।
श्राप के प्रभाव से दोनों पिशाच बन गये और हिमालय पर्वत पर एक वृक्ष पर अत्यंत कष्ट भोगते हुए रहने लगे। एक बार माघ शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन दोनो अत्यंत दु:खी थे जिस के चलते उन्होंने सिर्फ फलाहार किया और उसी रात्रि ठंड के कारण उन दोनों की मृत्यु हो गई। इस तरह अनजाने में जया एकादशी का व्रत हो जाने के कारण दोनों को पिशाच योनि से मुक्ति भी मिल गयी। वे पहले से भी सुन्दर हो गए और पुन: स्वर्ग लोक में स्थान भी मिल गया। जब देवराज इंद्र ने दोनों को वहां देखा तो चकित हो कर उनसे मुक्ति कैसे मिली यह पूछा। तब उन्होंने बताया कि ये भगवान विष्णु की जया एकादशी का प्रभाव है। इन्द्र इससे प्रसन्न हुए और कहा कि वे जगदीश्वर के भक्त हैं इसलिए अब से उनके लिए आदरणीय हैं अत: स्वर्ग में आनन्द पूर्वक विहार करें।