- यह कही बाहर अपनी कुटिया नही बनाते है। यह श्माशान के पास ही कुटिया बनाकर अपनी धुनी रमाते है। ह किसी को भी साथ नही रखते है। चाहे वह जानवर ही क्यो न हो। यह अपने साथ सिर्फ कुत्ते को रखते है। और अघोरी की सेवा करने के लिए इनके साथ शिष्य होते है वह करते है।
- अघोरी कभी भी आपके मन से नही दिखेगे। चाहे आप कितना भी ढूंढे। यह कुछ ही स्थानों में मिलते है। सबसे ज्यादा तदाद में यह कुंभ के समय दिखाई देते है। या फिर इन तीर्थ के स्थानों में पाए जाते है। वह है भगवान शिव की नगरी काशी यानि बनारस सबसे ऊपर है। यहां बाबा कीनाराम का स्थल एक महत्वपूर्ण तीर्थ भी है। इसके बाद असम का कामाख्या मंदिर, पश्चिम बंगाल का तारापीठ, नासिक का अर्धज्योतिर्लिंग, गुजरात के जूनागढ़ का गिरनार पर्वत और उज्जैन के महाकाल के आसपास भी अघोरी दिखते हैं। कहते हैं कि इन जगहों पर सिद्धियां जल्दी मिलती हैं। साधना पूरी होने के बाद ये अघोरी सदा के लिए हिमालय चले जाते हैं।