आश्विन मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी कहते हैं। इस बार ये इंदिरा एकादशी 13 सितंबर को है। ये एकादशी पितरों को मोक्ष प्रदान करने वाली एकादशी कहलाती है। माना जाता है कि पितरों को किसी कारणवश कष्ट उठाने पड़ रहे हैं तो इस व्रत को करने से उनके सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। ये व्रत एकादशी को रखा जाता है और द्वादशी को खोला जाता है। जानें इंदिरा एकादशी के व्रत का शुभ मुहूर्त और नियम और कथा।
इंदिरा एकादशी का शुभ मुहूर्त
एकादशी प्रारंभ: 13 सितंबर की सुबह 4 बजकर 13 मिनट से
एकादशी समाप्त: 14 सितंबर की सुबह 3 बजकर 16 मिनट तक
पारण का समय: 14 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 59 मिनट से शाम 3 बजकर 27 मिनट तक
इंदिरा एकादशी व्रत करते वक्त ध्यान रखें ये बातें
- इंदिरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।
- इस दिन चावल को खाने से बचें। इसके अलावा जो लोग इस व्रत को नहीं रख रहे हैं वो भी इस दिन चावल ना खाएं।
- इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
- इस दिन गुस्सा या फिर झगड़े से बचना चाहिए।
- इस दिन महिलाओं का अपमान करने से व्रत का फल नहीं मिलता है। इसलिए इस दिन भूल से भी महिलाओं का अपमान ना करें। ऐसा करने वालों को कष्टों का सामना करना पड़ सकता है।
- इस दिन मदिरा का सेवन करने से बचें। ऐसा करने से जीवन मुश्किलों से भर जाता है।
ऐसे करें व्रत
- सुबह उठकर स्नान करें
- इसके बाद संकल्प लें कि इस दिन सभी भोगों का त्याग करूंगा या फिर करूंगी। मैं आपकी शरण में हूं, मेरी रक्षा करें।
- संकल्प लेने के बाद भगवान शालिग्राम की मूर्ति के आगे विधि पूर्वक श्राद्ध करके योग्य ब्राह्मणों को फलाकर कराएं और दक्षिणा करें
- पितरों के श्राद्ध से जो बच जाए उसे गाय को दें
- इसके बाद धूप, दीप, गंध, नैवेद्य आदि सामग्री से पूजन करें
- द्वादशी तिथि को सुबह होने पर भगवान का पूजन करें
- ब्राह्मणों को भोजन कराने के बाद परिवार के सभी लोग भोजन करें
- इस तरह से व्रत करने से पितरों को स्वर्ग में स्थान मिलता है
ये है इंदिरा एकादशी व्रत की कथा
सतयुग में महिष्मति नगरी में इंद्रसेन नाम का एक प्रतापी राजा था। राजा अपनी प्रजा का बहुत ध्यान रखता था। राजा पुत्र, पौत्र और धन से परिपूर्ण था और भगवान विष्णु का परमभक्त था। एक दिन जब राजा अपनी सभा में बैठा तो महर्षि नारद वहां आ गए। राजा उन्हें देखते ही खड़े हो गए और उनका पूजन किया। जब उन्होंने देवर्षि नारद से आने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा कि राजन मैं एक ब्रह्मलोक से यमलोक को गया। वहां श्राद्धपूर्वक यमराज से पूजित होकर मैंने धर्मशील और सत्यवान धर्मराज की प्रशंसा की।
यमराज की सभा में महान ज्ञानी और धर्मात्मा तुम्हारे पिता को एकादशी का व्रत भंग होने का कारण देखा। उन्होंने मेरे द्वारा संदेश भिजवाया कि पूर्व जन्म में कोई विघ्न होने के कारण मैं यमराज के निकट रह रहा हूं। इसलिए अगर तुम आश्विन कृष्ण इंदिरा एकादशी को मेरे लिए व्रत करो तो मुझे स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। नारद जी की बात सुनकर राजा ने बांधवों और दासों के साथ मिलकर व्रत किया। जिसके प्रभाव से राजा के पिता गरुड़ पर चढ़कर विष्णुलोक को गए। इसके बाद राजा इंद्रसेन भी इस व्रत के प्रभाव से अपने पुत्र को सिंहासन पर बैठाकर स्वर्गलोक को गए। तब से ही इस व्रत को करने का विधान है।