Tuesday, December 24, 2024
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Putrada Ekadashi 2019: इस एकादशी जैसी कोई दूसरी नहीं, इस विधि से पूजा कर खोलें अपने भाग्य

पौष मास की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत संतान के लिए बहुत ही महत्व रखता है। इस बार ये एकादशी 17 जनवरी, गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने से आपको संतान सुख मिलेगा। जानिए इसकी पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त और कथा के बारें में।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : January 16, 2019 19:55 IST
पुत्रदा एकादशी
पुत्रदा एकादशी

धर्म डेस्क: पौष मास की शुक्ल पक्ष को पड़ने वाली एकादशी को पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह व्रत संतान के लिए बहुत ही महत्व रखता है। इस बार ये एकादशी 17 जनवरी, गुरुवार को पड़ रहा है। इस दिन विधि-विधान के साथ पूजा-पाठ करने से आपको संतान सुख मिलेगा। जानिए इसकी पूजा-विधि, शुभ मुहूर्त और कथा के बारें में।

पूजा विधि

आज के दिन सुबह के समय नहा-धोकर, साफ कपड़े पहनकर पास के किसी शिव मंदिर में जायें और वहां जाते समय अपने साथ दूध, दही, शहद, शक्कर, घी और भगवान को चढ़ाने के लिये साफ और नया कपड़ा ले जायें अब मन्दिर जाकर शिवलिंग को पंचामृत से स्नान करायें यहां इस बात का ध्यान रखें कि सब चीज़ों को एक साथ मिलाना नहीं है बल्कि अलग-अलग रखना है। अब शिवलिंग पर क्रम से सबसे पहले दूध से, फिर दही से, शहद से, शक्कर से और सबसे अन्त में घी से स्नान करायें और प्रत्येक स्नान के बाद शुद्ध जल शिवलिंग पर चढ़ाना न भूलें।  (Putrada Ekadash 2019: संतान के लिए उत्तम है ये पुत्रदा एकादशी व्रत, राशिनुसार ये उपाय करना होगा फलदायी )

सबसे पहले शिवलिंग पर दूध चढ़ाएं, उसके बाद शुद्ध जल चढ़ाएं फिर दही चढ़ाएं, उसके बाद फिर से शुद्ध जल चढ़ाएं। इसी तरह बाकी चीज़ों से भी स्नान कराएं। भगवान को स्नान कराने के बाद उन्हें साफ और नये कपड़े अर्पित करें। अब मन्त्र जप करना है। (राशिफल 17 जनवरी 2019: बन रहा है शुभ योग, इन राशियों को मिलेगा अचानक धन लाभ )

ॐ गोविन्दाय, माधवाय नारायणाय नम.

इस मंत्र का 108 बार जाप करना है और हर बार मन्त्र पढ़ने के बाद एक बेलपत्र भी भगवान शंकर को जरूर चढ़ाएं। भगवान के पूजन के पश्चात ब्राह्मणों को अन्न, गर्म वस्त्र एवं कम्बल आदि का दान करना अति उत्तम कर्म है। यह व्रत क्योंकि शुक्रवार को है इसलिए इस दिन सफेद और गुलाबी रंग की वस्तुओं का दान करना चाहिए। व्रत में बिना नमक के फलाहार करना श्रेष्ठ माना गया है तथा अन्न का सेवन नहीं करना चाहिए।

व्रत कथा
प्राचीन काल में भद्रावती नगरी में सुकेतुमान नाम का राजा अपनी रानी शैव्या के साथ राज्य करता था। वह बड़ा धर्मात्मा राजा था और अपना अधिक समय जप, तप और धर्माचरण में व्यतीत करता था। राजा के द्वारा किया गया तर्पण पितर, देवता और ऋषि इसलिए नहीं लेते थे क्योंकि वह उन्हें ऊष्ण जान पड़ता था।

इस सबका कारण राजा के पुत्र का न होना था। राजा हर समय इस बात से चिंतित रहता था कि पुत्र के बिना वह देव ऋण, पितृ ऋण और मनुष्य ऋण से मुक्ति कैसे प्राप्त कर सकता है। इसी चिंता से एक दिन राजा बड़ा उदास एवं निराश होकर घोड़े पर बैठकर अकेले ही जंगल में निकल गया।

वहां भी पशु पक्षियों की आवाजों और शोर के कारण राजा के अशांत मन को शान्ति नहीं मिली। अंत में राजा ने कमल पुष्पों से भरे एक सरोवर को देखा, वहां ऋषि मुनि वेद मंत्रो का उच्चारण कर रहे थे। राजा ने सभी को प्रणाम किया तो विश्वदेव ऋषियों ने राजा की इच्छा पूछी। राजा ने उनसे पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मांगा।

ऋषियों ने राजा को पुत्रदा एकादशी का व्रत करने के लिए कहा। राजा वापिस राज्य में आया और उसने रानी के साथ पुत्रदा एकादशी का व्रत बड़े भाव से किया। व्रत के प्रभाव से राजा को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिससे सभी प्रसन्न हुए और स्वर्ग के पितर भी संतुष्ट हो गए। शास्त्रों के अनुसार पुत्र प्राप्ति की कामना से व्रत करने वाले को पुत्र की प्राप्ति अवश्य होती है।

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