आज आधिक आश्विन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि और गुरुवार का दिन है। अष्टमी तिथि आज शाम 7 बजकर 2 मिनट तक रहेगी। साथ ही आज रात 9 बजकर 54 मिनट तक सौभाग्य योग रहेगा। यह योग सदा मंगल करने वाला होता है। नाम के अनुरूप यह भाग्य को बढ़ाने वाला है। इस योग में की गई शादी से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। आज सारे काम बनाने वाला रवि योग भी है। रवि योग आज शाम 6 बजकर 10 मिनट से शुरु होकर कल पूरा दिन पूरी रात पार कर परसो यानी 26 तारीख शाम 7 बजकर 26 मिनट तक रहेगा। इस योग के दौरान कोई काम करने से वह अवश्य ही पूरा होता है। रवि योग व्यक्ति को अपने अंदर पॉजिटिविटी बढ़ाने में मदद करता है। इस दौरान किये गये कार्यों से सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। इस दौरान खरीददारी करना भी बड़ा ही शुभ होता है।
आज शाम 6 बजकर 10 मिनट तक मूल नक्षत्र रहेगा। सत्ताइस नक्षत्रों में से 19वां मूल नक्षत्र को माना जाता है। मूल नक्षत्र के स्वामी केतु हैं मूल का अर्थ होता है- केन्द्रीय बिन्दु या जड़। इसका प्रतीक चिन्ह भी एक साथ बंधी हुई कुछ पौधों की जड़ों को माना जाता है। मूल नक्षत्र का संबंध साल के पेड़ से बताया गया है। मूल नक्षत्र में जन्मे लोगों को आज के दिन साल के पेड़ की उपासना जरूर करनी चाहिए। । जब मूल नक्षत्र का नाम आता है, तो ज्यादातर लोग परेशान हो जाते हैं। ऐसा क्या है इन मूल नक्षत्रों में। जानिए आचार्य इंदु प्रकाश से।
मूल शांति क्या है ?
आपने कई बार बच्चों के जन्म के वक्त सुना होगा कि बच्चा मूलों में हुआ है, इसकी मूल शांति करवानी पड़ेगी। । दरअसल 6 प्रकार के मूल या मूल संज्ञक होते हैं- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, रेवती और मूल। वास्तव में अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, रेवती और मूल, इन 6 नक्षत्रों को मूल कहते हैं और जो इस लिस्ट में मूल आता है, वह मूल नक्षत्र है, जिसका पूरा नाम मूलबर्हणी है, जिन बच्चों का जन्म इन 6 नक्षत्रों में से किसी भी एक नक्षत्र में हुआ हो, उस बच्चे को मूलों में जन्मा हुआ माना जाता है और ऐसे बच्चे की शांति करवाना अनिवार्य होता है। जन्म के 27 दिन बाद उसी नक्षत्र के आने पर बच्चे की मूल शांति करायी जाती है, लेकिन जो लोग किसी कारणवश जन्म के 27 दिन बाद अपने बच्चों की मूल शांति ना करा पायें हों, वो इन 6 नक्षत्रों, यानी अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, रेवती और मूल नक्षत्रों के दौरान शुभ
समय में मूल शांति करा सकते हैं
'प्रश्नव्याकरणांग' के अनुसार प्रत्येक हिन्दू माह की पूर्णिमा के हब से भी नक्षत्रों का वर्गीकरण किया गया है। जिन बच्चों का जन्म 27 नक्षत्रों में से केवल मूल नक्षत्र में हुआ हो, उनके लिये आज शुभ संयोग है। आप आज के दिन अपने बच्चे की मूल शांति करा सकते हैं और वो कैसे करानी है, ये भी आचार्य इंदु प्रकाश से जानिए
बड़ी ही सरल विधि से मूल नक्षत्र में जन्मे बच्चों की मूल शांति करायेंगे। अतः कुश, जल और हवन की तैयारी तो आपने कर ही ली होगी। बाकी मंत्र मैं खुद आपको पढ़कर सुनाऊंगा। ध्यान से सुनियेगा और सुनते समय बच्चे के साथ-साथ बच्चे के माता-पिता भी मौजूद होने चाहिए।
मूल शांति की पूजा विधि
सबसे पहले माता-पिता और बच्चा साफ-सुथरे कपड़े, हो सके तो नये कपड़े पहनकर एक आसन पर बैठ जायें। अब बच्चे के दाहिने हाथ में कुश और थोड़ा-सा जल देकर, अपने हाथ से बच्चे के हाथ को नीचे की तरफ से सहारा दें और विनियोग मंत्र बोले। अगर आप साथ-साथ मन-मन में बोल सकते हैं, तो मंत्र बोल लें, वरन् केवल ध्यान से सुनें और जैसे-जैसे बतायें, वैसे करें।
विनियोग मंत्र है-
ऊँ अस्य अथर्ववेदस्य षष्ठ काण्डस्य दशाधिकशतं सूक्तस्य अथर्वा ऋषि। अग्निः देवता। त्रिष्टुप, पंक्तिश्छन्दसी। मूलजात मूलादिजनित दोषोपशमनार्थे जलावसेचने, रक्षोहणे च विनियोगः।"
इस प्रकार विनियोग मंत्र समाप्त हुआ, अब हाथ में लिये गये जल को नीचे जमीन पर छोड़ दें।
विनियोग के बाद बच्चे के दोष को दूर करने के लिये और भविष्य में उसके कल्याण के लिये तैतिरीय श्रुति के अनुसार मूल नक्षत्र के स्वामी निर्ऋति और अग्निदेव का ध्यान करते हुए इस मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र है-
ऊँ प्रत्नो हि कमीडयो अध्वरेषु सनाच्च होता नव्यश्च सत्सि।
स्वां चाग्ने तत्वं पिप्राय स्वास्मभ्यं च सौभगमा यजस्व।।......1
ज्येष्ठघ्न्यां जातो विचृतौ यमस्य मूलबर्हणात्परि पालयेनम्।
अत्येनं नेषद् दुरितानि विश्वा दीर्घायुत्वाय शतशारदाय।।......2
व्याघ्रे अह्वय जनिष्ट वीरो नक्षत्रजा जायमानः सुवीरः।
स मा वधीत् पितरम् वर्धमानो मा मातरं प्र भिनी अंजनि त्रीम्।।.......3
इस प्रकार विनियोग और मंत्र जाप के बाद आधी प्रक्रिया पूरी हो जाती है। बाकी आधी प्रकिया छोटा-सा हवन कराने और किसी सुपात्र ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा देने के बाद पूरी हो जायेगी। हवन किसी सुपात्र ब्राह्मण से ही कराना चाहिए। इस प्रकार आपके बच्चे की मूल शांति की प्रक्रिया समाप्त होती है।
यहां आपको एक महत्वपूर्ण बात और बता दें कि जिन बच्चों का जन्म एक्जैक्टली मूल नक्षत्र, यानी मूलेबर्हणी में न हुआ हो, लेकिन मूलों में हुआ हो, यानी अन्य मूल नक्षत्र- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा या रेवती में हुआ हो, वो लोग भी ठीक इस विधि से उन नक्षत्रों के आने पर अपने बच्चे की मूल शांति करा सकते हैं। विनियोग और मंत्र यहीं रहेंगे। फर्क सिर्फ इतना है कि ज्येष्ठा की मूल शांति ज्येष्ठा में, अश्विनी की अश्विनी में, आश्लेषा की आश्लेषा में, रेवती की रेवती में और मघा की मघा नक्षत्र में मूल शांति होगी।