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Holika Dahan 2021: जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और होली पूजन की संपूर्ण सामग्री

फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन स्नान-दान कर उपवास रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 28, 2021 8:08 IST
Holika Dahan 2021: जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और होली पूजन की संपूर्ण सामग्री- India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/DRZ_PAVAN_KHATRI/ Holika Dahan 2021: जानिए होलिका दहन का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और होली पूजन की संपूर्ण सामग्री

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा है। शास्त्रों में फाल्गुन पूर्णिमा का धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक महत्व है। धार्मिक मान्यता के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दिन स्नान-दान कर उपवास रखने से मनुष्य के दुखों का नाश होता है और उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है। साथ ही बुराई पर अच्छाई का दिन भी है यानि कि इस दिन होलिका दहन किया जायेगा। होलिका का ये त्योहार बहुत पुराने समय से मनाया जा रहा है। इस बार होली 28 और 29 मार्च को मनाई जाएगी। 

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार जैमिनी सूत्र में इसका आरम्भिक शब्दरूप ‘होलाका’ बताया गया है। वहीं हेमाद्रि, कालविवेक में होलिका को ‘हुताशनी’ कहा गया है। वहीं भारतीय इतिहास में इस दिन को भक्त प्रहलाद की जीत से जोड़कर देखा जाता है। कहा जाता है कि प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का अत्यंत बलशाली राजा था जो भगवान में बिल्कुल भी विश्वास नहीं रखता था। लेकिन उसका पुत्र प्रहलाद श्री विष्णु का परम भक्त था।  होलिकादहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है।

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होलिका दहन के दिन लकड़ियों के ढेर के साथ ही गोबर के उपले या कंडे जलाने की भी प्रथा है। हमारे शास्त्रों में या हमारी परंपराओं में हर चीज़ बड़ी ही सोच-समझकर बनायी गयी है। इन सबसे हमें कहीं-न-कहीं फायदा जरूर होता है। इसी तरह से आज के दिन गोबर के उपलों को जलाने के पीछे भी हमारी ही भलाई छिपी हुई है।  इसके साथ ही होलिका दहन के दिन से होलाष्टक समाप्त हो जाएगे, जिसके चलते विवाह आदि सभी शुभ कार्य अब फिर से शुरू हो जायेंगे। 

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 

तिथि- 28 मार्च

पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ- 28 मार्च सुबह 3 बजकर 27 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त- 29 मार्च रात 12 बजकर 17 मिनट पर
दहन का मुहूर्त– शाम 6 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 56 मिनट तक
रंगवाली होली खेलने की तिथि- 29 मार्च

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होली मनाने का कारण

शास्त्रों में इस दिन होली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथा दी गई है। लेकिन इन सबमें सबसे ज्यादाभक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार  फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है।

कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती।

भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस प्रकार होली का यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।

होली पूजा विधि

होलिका दहन से पहले होली पूजन का विशेष विधान है। इस दिन सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान कर लें। इसके बाद होलिका पूजन वाले स्थान में जाए औप पूर्व या उत्तर दिशा में मुख करके बैठ जाएं। इसके बाद पूजन में गाय के गोबर से होलिका और प्रहलाद की प्रतिमाएं बनाए। इसके साथ ही रोली, अक्षत, फूल, कच्चा सूत, हल्दी, मूंग, मीठे बताशे, गुलाल, रंग, सात प्रकार के अनाज, गेंहू की बालियां, होली पर बनने वाले पकवान, कच्चा सूत, एक लोटा जल मिष्ठान आदि के साथ होलिका का पूजन किया जाता है। इसके साथ ही भगवान नरसिंह की पूजा भी करनी चाहिए।  

होलिका पूजा के बाद होली की परिक्रमा करनी चाहिए और होली में जौ या गेहूं की बाली, चना, मूंग, चावल, नारियल, गन्ना, बताशे आदि चीज़ें डालनी चाहिए।

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