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...तो झांसी के इस गांव से शुरु हुआ रंगो का त्योहार होली मनाने की परंपरा

होली का त्यौहार आते ही पूरा देश रंग और गुलाल की मस्ती में सरोवार हो जाता है लेकिन शायद बहुत कम लोग ही जानते होंगे कि पूरी दुनिया को रंगीन करने वाले इस पर्व की शुरुआत झांसी जिले के एक गांव से हुई थी। जानिए इस गांव के बारें में...

India TV Lifestyle Desk
Published : March 12, 2017 17:03 IST

holi

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 कुछ अलग अंदाज में यहां के लोग मनाते है होली

बुंदेलखंड का सबसे पुराना नगर एरच ही है। 'श्रीमद्भागवत' के दूसरे सप्तम स्कन्ध के दूसरे से नौवें और झांसी के 'गजेटियर' में पेज संख्या तीन सौ उन्तालीस में भी होली की शुरुआत से जुड़े प्रमाण दिए गए है। इसके साथ ही इस नगरी में अब भी खुदाई में हजारो साल पुरानी ईंटों का निकलना साफ तौर पर इसकी ऐतिहासिकता साबित करता है।

जब इस नगरी ने पूरी दुनिया को रंगों का त्यौहार दिया हो तो यहा के लोग भला होली खेलने में पीछे क्यों रहे। लोकगीतों की फागों से रंग और गुलाल का दौर फागुन महीने से शुरू होकर रंगपंचमी तक चलता है। ठेठ बुन्देली अंदाज में लोग अपने साजो और सामान के साथ फाग गाते हैं। इसी के साथ महसूस करते हैं उस गर्व को जो पूरी दुनिया को रंगों का त्यौहार देने वाले इस कस्बे के निवासियों में होना लाजमी है।

होली जलने के तीसरे दिन इस गांव में खेली जाती है दोज
जिस तरह दुनिया के लोग ये नहीं जानते कि होली की शुरुआत झांसी से हुई उसी तरह दर्शकों को ये जानकर हैरानी होगी कि आज भी बुंदेलखंड में होली जलने के तीसरे दिन यानी दोज पर खेली जाती है क्योंकि हिरणाकश्यप के वध के बाद अगले दिन एरिकच्छ के लोगों ने राजा की मृत्यु का शोक मनाया और एकदूसरे पर होली की राख डालने लगे।

बाद में भगवान विष्णु ने दैत्यों और देवताओं के  बीच सुलह कराई। समझौते के बाद सभी लोग एकदूसरे पर रंग.गुलाल डालने लगे इसीलिए बुंदेलखंड में होली के अगले दिन कीचड की होली खेली जाती है और रंगों की होली दोज के दिन खेली जाती है। यहां हर साल चैत माह की पूर्णिमा को विशाल प्राचीन मेले का आयोजन होता है जो कई पीडियो से होता आ रहा हैं

बुंदेलखंड का पवित्र स्थल एरच ही है जहां पृथ्वी पर मानव जीव को दिशा व दशा का ज्ञान हुआ। पुराणो के अनुसार ऐसा माना जाता है कि हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकश्यप सतयुग के प्रथम शासक हुये जिन्होने परमब्रह्म की इतनी तपस्या की कि उनके परिवार के लिए भगवान विष्णु को तीन अवतार धारण कर उन्हें मोक्ष प्रदान करना पडा। सभी जानते है कि सतयुग में केवल मत्स्य, कच्छप, वाराह व नरसिंह अवतार ही हुए जिनमें दो इसी खानदान के लिए हुए और त्रेता का प्रथम मानव अवतार वामन हुआ जो प्रहलाद के प्रपौत्र एवं वैरोचन के पुत्र राजा बलि से तीन पग धरती मांगने के लिये आए।

यहां पर स्थित है यह ऐतिहासिक नगरी
आपको बता दे कि यह बुन्देलखण्ड की वह धरा जो सतयुगकाल की ऐताहासिक नगरी है जो वर्तमान मे प्रदेश की राजधानी लखनउ से 200 व झांसी से 70 किमी दूरी पर स्थित है वर्तमान समय मे यह क्षेत्र सैलानियो व पर्यटको के अलावा श्रद्धालुओं का केन्द्र वना हुआ है जहां से लाखों लोगेा का दिल जुडा हुआ है।

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