हिंदू धर्म में होली का बहुत अधिक महत्व है। दो दिन पड़ने वाले इस त्योहार में पहले दिन होलिका दहन किया जाता है और दूसरे दिन रंग खेला जाता है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होली का त्योहार मनाया जाता है। इस बार होलिका दहन 9 मार्च को होगा और 10 मार्च को रंग की होली खेली जाएगी। होलिका दहन को लेकर माना जाता है कि इस दिन अंहकार, बुराई और नकारात्मक शक्तियों को पवित्र आग में जला दिया जाता है। जिससे घर में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती हैं।
बसंत पंचमी के दिन होली की शुरुआत कर दी जाती है। इस दिन होलिका दहन जिस जगह किया जाता है वहां पर विधिवत पूजा-अर्चना करके एक लकड़ी रखी जाती है। जिससे साथ ही वहां पर लोग लकड़ियों का ढेर लगाने लगते है। जिसे होलिका दहन के दिन शुभ मुहूर्त देखकर जलाया जाता है।
होली मनाने का कारण
शास्त्रों में इस दिन होली मनाने के पीछे कई पौराणिक कथा दी गई है। लेकिन सबसे ज्यादा भक्त प्रहलाद और हिरण्यकश्यप की कहानी प्रचलित है। पौराणिक कथाओं के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा को बुराई पर अच्छाई की जीत को याद करते हुए होलिका दहन किया जाता है।
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कथा के अनुसार असुर हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था, लेकिन यह बात हिरण्यकश्यप को बिल्कुल अच्छी नहीं लगती थी। बालक प्रह्लाद को भगवान कि भक्ति से विमुख करने का कार्य उसने अपनी बहन होलिका को सौंपा, जिसके पास वरदान था कि अग्नि उसके शरीर को जला नहीं सकती।
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भक्तराज प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से होलिका उन्हें अपनी गोद में लेकर अग्नि में प्रविष्ट हो गयी, लेकिन प्रह्लाद की भक्ति के प्रताप और भगवान की कृपा के फलस्वरूप खुद होलिका ही आग में जल गई। अग्नि में प्रह्लाद के शरीर को कोई नुकसान नहीं हुआ। इस प्रकार होली का यह त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है।