धर्म डेस्क: फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिकादहन किया जायेगा और उसके अगले दिन रंग खेला जायेगा। होली के साथ ही होलाष्टक भी समाप्त हो जायेंगे, जिसके चलते विवाह आदि सभी शुभ कार्य अब फिर से शुरू हो जायेंगे।
होलिका का यह उत्सव प्राचीन समय से मनाया जाता रहा है। इसका उल्लेख वात्स्यायन के कामसूत्र में भी मिलता है। जैमिनी सूत्र के अनुसार इसका आरम्भिक शब्दरूप 'होलाका' था।
बुराई पर अच्छाई की इसे जीत के बाद ही होलिकादहन का यह त्योहार मनाया जाने लगा। होलिकादहन के समय ऐसी परंपरा भी है कि होली का जो डंडा गाडा जाता है, उसे प्रहलाद के प्रतीक स्वरुप होली जलने के बीच में ही निकाल लिया जाता है।
शुभ मुहूर्त
1 मार्च को सुबह 08 बजकर 58 मिनट से शाम 7:40 तक भद्रा रहेगी और भद्रा के दौरान कोई भी शुभ कार्य नहीं किया जाता। अतः होलिकाहदन शाम 7:40 के बाद ही किया जायेगा। इसके बाद से होलिका दहन किया जाना शुभ रहेगा। वैसे शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुसार इस साल होलिका दहन के लिए बहुत ही शुभ स्थिति बनी हुई है।