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होली 2020: आज से लग रहा है होलाष्टक, अगले 8 दिन तक नहीं होगा कोई भी शुभ काम

इस साल होलिका दहन 9 मार्च को है। होली के त्योहार के ठीक 8 दिन पहले होलाष्टक शुरू हो जाता है। जानें तिथि, साथ ही इसे मनाने के पीछे की पौराणिक कथा।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: March 02, 2020 6:29 IST
Holi 2020- India TV Hindi
Holi 2020

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार फाल्गुन शुक्ल पक्ष की उदया तिथि अष्टमी दोपहर 12 बजकर 53 मिनट से शुरू हो जाएगी। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि से होलाष्टक शुरू हो जाता है और इसके ठीक 8 दिन बाद होली का त्योहार मनाया जाता है। 

होलाष्टक का अर्थ ही है – होली से आठ दिन पहले। होलाष्टक का समय 2 मार्च से शुरू होकर होलिका दहन तक रहेगा। उसके बाद जिस दिन होली खेली जायेगी, उस दिन होलाष्टक समाप्त हो जाएगा। यहां ध्यान देने की बात यह है कि इन आठ दिनों के दौरान किसी भी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित माना जाता है। इस दौरान मुख्य तौर पर विवाह, गृह प्रवेश आदि सोलह संस्कारों को करने की मनाही होती है। इसके अलावा अगर होली से इसके संबंध की बात करें, तो होली से संबंधित सारी तैयारियां होलाष्टक से शुरू हो जाती हैं।

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बाजार में भी आपको होलाष्टक के पहले दिन से ही होली की रौनक दिखनी शुरू हो जायेगी। होलिका दहन के लिये सूखी लकड़ियां, गोबर के उपले आदि भी इसी दिन से ही इकट्ठे करने शुरू कर दिये जाते हैं। साथ ही होलिका पूजा के लिये स्थानीय जगहों पर जो गोबर की विभिन्न आकृतियों से माला बनायी जाती है, वो सब कार्य भी इस दिन से आरंभ किये जाते हैं।

होलाष्टक को अशुभ मानने के पीछे पौराणिक कथा

होलाष्टक को लेकर 2 पौराणिक कथाएं सामने आईं है। पौराणिक मान्‍यताएं कहती हैं कि होली से 8 दिन पूर्व अर्थात फाल्गुन शुक्ल अष्टमी से प्रकृति में नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है और इसीलिए इन आठ दिनों में कोई भी शुभ काम करने की मनाही है।

होलाष्टक के दिन यानी फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी को दैत्य राज हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र प्रहलाद को बंदी बनाकर यातनाएं देना शुरू किया। उन्हें होलिका में जलाने का प्रयास किया। जिसके लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली, लेकिन इसमें खुद होलिका भस्म हो गई। अगले दिन रंग खेला जाता है और ये पर्व राधा और कृष्ण के रंग खेलने की परंपरा को जीवित रखे हुए है।

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इसके अलावा दूसरी पौराणिक कथा है कि इस दिन महादेव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। जिससे प्रकृति में शोक की लहर फैल गई थी। इसके साथ ही शुभ काम होना बंद हो गए थे, लेकिन होली के दिन भगवान शिव से कामदेव ने वापस जीवित होने का का वरदान मांगा था जिसे शिव ने स्वीकार कर कामदेव को जीवित कर दिया था। इसके बाद प्रकृति फिर से आनंदित हो गई औऱ दोनों लोकों में फिर से प्रेम जागृत हो गया था। 

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