Friday, November 22, 2024
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Hariyali Amavasya 2021: हरियाली अमावस्या कब? जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पितरों का तर्पण करने की विधि

8 अगस्त को श्रावण कृष्ण पक्ष की स्नान-दान श्राद्ध की अमावस्या है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहते हैं।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: August 06, 2021 9:34 IST
Hariyali Amavasya 2021: हरियाली अमावस्या कब? जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पितरों का तर्पण करने की - India TV Hindi
Image Source : INSTAGRAM/RAVI_WRITES_0401 Hariyali Amavasya 2021: हरियाली अमावस्या कब? जानिए शुभ मुहूर्त, व्रत कथा और पितरों का तर्पण करने की विधि

श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि रविवार को पड़ रही है। 8 अगस्त को श्रावण कृष्ण पक्ष की स्नान-दान श्राद्ध की अमावस्या है। श्रावण मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को हरियाली अमावस्या कहते हैं। इसे चितलगी अमावस्या भी कहते हैं| विशेष तौर पर उत्तर भारत में इस अमावस्या का बहुत अधिक महत्व है।

सावन के महीने में चारों तरफ हरियाली होती है | इसलिए पुराणों में भी हरियाली अमावस्या को पर्यावरण संरक्षण के रूप में मनाने की परंपरा है | हमारी संस्कृति में वृक्षों को भगवान के रूप में पूजा जाता है। कहते हैं- हर वृक्ष में किसी न किसी देवता का वास होता है। जैसे पीपल के वृक्ष में तीनों महाशक्ति ब्रह्मा, विष्णु और शिवजी का वास माना जाता है। शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को आज कोई न कोई पौधा आवश्य लगाना चाहिए। अगर आज न लगा सके तो आज से आने वाले आठ दिन तक कभी भी लगा लें। 

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हरियाली अमावस्या का शुभ मुहूर्त

अमावस्या की तिथि 07 अगस्त 2021 को शाम 7 बजकर 13 मिनट से शुरू होगी। इस तिथि का समापन 08 अगस्त  शाम 7 बजकर 19 मिनट पर होगा।  उसके बाद श्रावण शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि लग जायेगी।

हरियाली अमावस्या में करें पितरों का तर्पण

आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार हरियाली अमावस्या के दिन शिव की पूजा करने से प्यार, पैसा और कामयाबी हासिल होती है। साथ ही इस दिन पितरों के निमित दान-पुण्य का भी बहुत अधिक महत्व है। आज तांबे के लौटे में जल भरकर, उसमें गंगाजल, कच्चा दूध, तिल, जौ, दूब, शहद और फूल डालकर पितरों का तर्पण करना चाहिए। तर्पण करते समय दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके हाथ में तिल और दूर्वा लेकर अंगूठे की ओर जलांजलि देते हुए पितरों को जल अर्पित करें।

हरियाली तीज व्रत कथा
बहुत समय पहले एक राजा प्रतापी राजा था। उनको एक बेटा और एक बहू थे। एक दिन बहू ने चोरी से मिठाई खा लिया और नाम चूहे का लगा दिया। जिसकी वजह से चूहे को बहुत गुस्सा आ गया। उसने मन ही मन निश्चय किया कि चोर को राजा के सामने लेकर आऊंगा। एक दिन राजा के यहां कुछ मेहमान आयें हुए थे। सभी मेहमान राजा के कमरे में सोये हुए थे। बदले की आग में जल रहे चूहे ने रानी की साड़ी ले जाकर उस कमरे में रख दिया। जब सुबह मेहमान की आंखें खुली और उन्होंने रानी का कपड़ा देखा तो हैरान रह गए। जब राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने अपनी बहू को महल से निकाल दिया।

रानी रोज शाम में दिया जलाती और ज्वार उगाने का काम करती थी। रोज पूजा करती गुडधानी का प्रसाद बांटती थी। एक दिन राजा उस रास्ते से निकल रहे थे तो उनकी नजर उन दीयों पर पड़ी। राजमहल लौटकर राजा ने सैनिकों को जंगल भेजा और कहा कि देखकर आओ वहां क्या चमत्कारी चीज थी। सैनिक जंगल में उस पीपल के पेड़ के नीचे गए। उन्होंने वहां देखा कि दीये आपस में बात कर रही थी। सभी अपनी-अपनी कहानी बता रही थीं। तभी एक शांत से दीये से सभी ने सवाल किया कि तुम भी अपनी कहानी बताओ। दीये ने बताया वह रानी का दीया है। उसने आगे बताया कि रानी की मिठाई चोरी की वजह से चूहे ने रानी की साड़ी मेहमानों के कमरें में रखा था और बेकसूर रानू को सजा मिल गई। सैनिकों ने जंगल की सारी बात राजा को बताई। जिसके बाद राजा ने रानी को वापस महल बुलवा लिया। जिसके बाद रानी खुशी-खुशी राजमहल में रहने लगी।

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