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हरितालिका तीज 26 को: अखंड सौभाग्य के लिए विधि-विधान के साथ इस शुभ मुहूर्त में रखें व्रत

हरितालिका तीज का व्रत का व्रत निर्जल रहा जाता है। इस व्रत में शाम को पूजा होते हुए रात भर, भजन-कीर्तन, जागरण के बाद दूसरे दिन सुबह समाप्त होता है, तब महिलाएं अपना व्रत तोड़ती हैं और अन्न-जल ग्रहण करती हैं। इस दिन शिव पार्वती जी पूजा की जाती है। जानि

Written by: Shivani Singh @lastshivani
Published on: July 25, 2017 13:43 IST

haritalika teej

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व्रत कथा
धर्म ग्रंथों के अनुसार  यह व्रत कथा है जिसमें तीज की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके पूर्व जन्म का याद दिलाने के लिेए के लिए सुनाई थी। जो  इस प्रकार है-
भगवान शिव नें पार्वती को बताया कि वो अपनें पूर्व जन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं। सती के रूप में भी वे भगवान शंकर की प्रिय पत्नी थीं।

एक बार सती के पिता दक्ष ने एक महान यज्ञ का आयोजन किया, लेकिन उसमें द्वेषतावश भगवान शंकर को आमंत्रित नहीं किया। जब यह बात सती को पता चली तो उन्होंने भगवान शंकर से यज्ञ में चलने को कहा, लेकिन आमंत्रित किए बिना भगवान शंकर ने जाने से इंकार कर दिया।

तब सती स्वयं यज्ञ में शामिल होने चली गईं औऱ अपने पिता दक्ष से पूछा कि मेरे पति को क्यों न बुलाया इस बात पर दक्ष नें खूब भसा -बुरा शकंर जी को सुनाया जिससे कुंठित होकर वहां उन्होंने अपने पति शिव का अपमान होने के कारण यज्ञ की अग्नि में देह त्याग दी।

अगले जन्म में सती का जन्म हिमालय राजा और उनकी पत्नी मैना के यहां हुआ। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी।

पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई। पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया, जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा, जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।

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