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Hal Shasti 2021: संतान की लंबी आयु के लिए रखें 'हलपष्ठी' व्रत, जानिए पूजन विधि, कथा

हरछठ के दिन व्रत करने से श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और जिनकी पहले से संतान है, उनकी संतान की आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: August 27, 2021 18:08 IST
 Har Chhath 2021: 28 अगस्त को मनाया जाएगा संतान के लिए रखा जाने वाला हलछठ व्रत, जानिए पूजन विधि, कथा- India TV Hindi
Image Source : INSTA/TIWARI.MAMTA83/MUSKAN___TIWARI1.6/  Har Chhath 2021: 28 अगस्त को मनाया जाएगा संतान के लिए रखा जाने वाला हलछठ व्रत, जानिए पूजन विधि, कथा 

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को 'हलषष्ठी' व्रत है। इस बार ये व्रत 28 अगस्त 2021 को पड़ रहा है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान कृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था। ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने से पुत्र पर आने वाले सभी संकट दूर हो जाते हैं।

बलराम जी का प्रधान शस्त्र हल और मूसल है, यही वजह है कि उन्हें 'हलधर' के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन को हल षष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में भी मनाया जाता है।  

पूजा के दिन महिलाएं पड़िया वाली भैंस के दूध से बने दही और महुवा को पलाश के पत्ते पर खा कर व्रत का समापन करती हैं। इस दिन गाय के दूध और दही का सेवन करना भी वर्जित माना जाता है। ज्योतिषाचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार षष्ठी तिथि 28 अगस्त को रात 8 बजकर 56 मिनट तक है। आईए जानते हैं हरछठ की पूजा विधि और व्रत कथा के बारे में। 

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हरछठ की पूजा विधि

हरछठ की पूजा के दिन सुबह सभी कामों से निवृत्त होकर स्नान करें। इसके बाद साफ कपड़े पहनकर गोबर ले आएं।फिर साफ जगह को इस गोबर से लीप कर तालाब बनाएं। इस तालाब में झरबेरी, ताश और पलाश की एक-एक शाखा बांधकर बनाई गई हरछठ को गाड़ दें। अंत में विधि-विधान के साथ पूजा-अर्चना करें। 

पूजा के लिए सतनाजा (यानी सात तरह के अनाज जिसमें आप गेंहू, जौ, अरहर, मक्का, मूंग और धान) चढ़ाएं इसके बाद हरी कजरियां, धूल के साथ भुने हुए चने और जौ की बालियां चढ़ाएं। आभूषण और हल्दी से रंगा हुआ कपड़ा भी चढ़ाएं। फिर भैंस के दूध से बने मक्खन से हवन करें। अंत में हरछठ की कथा सुनें।  

हरछठ की व्रत कथा

एक ग्वालिन गर्भवती थी। उसका प्रसव काल नजदीक था, लेकिन दूध-दही खराब न हो जाए, इसलिए वह उसको बेचने चल दी। कुछ दूर पहुंचने पर ही उसे प्रसव पीड़ा हुई और उसने झरबेरी की ओट में एक बच्चे को जन्म दिया। उस दिन हल षष्ठी थी। थोड़ी देर विश्राम करने के बाद वह बच्चे को वहीं छोड़ दूध-दही बेचने चली गई। गाय-भैंस के मिश्रित दूध को केवल भैंस का दूध बताकर उसने गांव वालों ठग लिया। इससे व्रत करने वालों का व्रत भंग हो गया। इस पाप के कारण झरबेरी के नीचे स्थित पड़े उसके बच्चे को किसान का हल लग गया। दुखी किसान ने झरबेरी के कांटों से ही बच्चे के चिरे हुए पेट में टांके लगाए और चला गया। 

ग्वालिन लौटी तो बच्चे की ऐसी दशा देख कर उसे अपना पाप याद आ गया। उसने तत्काल प्रायश्चित किया और गांव में घूम कर अपनी ठगी की बात और उसके कारण खुद को मिली सजा के बारे में सबको बताया। उसके सच बोलने पर सभी ग्रामीण महिलाओं ने उसे क्षमा किया और आशीर्वाद दिया। इस प्रकार ग्वालिन जब लौट कर खेत के पास आई तो उसने देखा कि उसका मृत पुत्र तो खेल रहा था।

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