आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन विधिवत रूप से गुरु की पूजा-अर्चना की जाती है। इस दिन महर्षि वेदव्यास का जन्म भी हुआ था जिसके कारण इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व के बारे में।
गुरु पूर्णिमा का शुभ मुहूर्त
आचार्य इंदु प्रकाश के अनुसार गुरु पूर्णिमा दोपहर पहले 4 जुलाई को सुबह 11 बजकर 34 मिनट से शुरू होगी। इसके साथ ही पूर्णिमा तिथि 5 जुलाई सुबह 10 बजकर 14 मिनट को समाप्त होगी।
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गुरु पूर्णिमा का महत्व
गुरु पूर्णिमा के दिन बड़ों और गुरुओं का आर्शीवाद लेना शुभ माना जाता है। इस दिन गुरु का पूजा करने का विधान है। गुरु की महिमा अपरंपार है। गुरु के बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं हो सकती। गुरु को तो भगवान से भी ऊपर दर्जा दिया गया है। इस दिन गुरु की पूजा की जाती है। पुराने समय में गुरुकुल में रहने वाले विद्यार्थी गुरु पूर्णिमा के दिन विशेष रूप से अपने गुरु की पूजा-अर्चना करते थे।
गुरु पूर्णिमा पूजा विधि
गुरु पूर्णिमा के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सभी कामों से निवृत्त होकर मंदिर जाकर देवी-देवता का नमन करें। इसके बाद इस मंत्र का उच्चारण करें- 'गुरु परंपरा सिद्धयर्थं व्यास पूजां करिष्ये'।
इसके अलावा आप चाहे तो इस मंत्र का जाप कर सकते हैं।
गुरुर्ब्रह्मा ग्रुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
इसके बाद ब्रह्मा, विष्णु और महेश की पूजा अर्चना करें। इसके लिए फल, फूल, रोली लगाएं। इसके साथ ही अपनी इच्छानुसार भोग लगाएं। फिर धूप, दीपक जलाकर आरती करें।
अगर गुरु सामने हैं तो करें ऐसे पूजा
आगर आप गुरुओं के सामने हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं। इसके बाद फूल अर्पण करते हुए उन्हें तिलक लगाएं। इसके बाद उन्हें शुद्ध भोजन कराएं और अपनी इच्छानुसार दक्षिणा देते हुए चरण स्पर्श करें। इसके बाद सादर के साथ विदा करें।