Highlights
- करतारपुर साहिब वो जगह है जहां मुसलिम समुदाय ने गुरु नानक देव जी की चादर और फूलों को का अंतिम संस्कार किया था।
- श्री करतार पुर साहिब में वो छोटा सा गुरुद्वारा अब भी मौजूद है जहां गुरु जी की चादर का संस्कार किया गया था।
19 नवंबर यानी कार्तिक पूर्णिमा को दुनिया भर में सिखों के पहले गुरु नानक देव जी की जयंती को जनता इसे गुरु पर्व के नाम से मनाती है औऱ तीन दिन तक भव्य आयोजन किए जाते हैं। गुरुवाणी, अखंठ पाठ, लंगर और नगर कीर्तिन होते हैं। सिख धर्म की स्थापना करने वाले गुरु नानक जी निर्गुण उपासना में विश्वास करते थे और सर्वधर्म सद्भावना के समर्थक थे।
उन्होंने अपने बाल्यकाल औऱ जीवन में अपनी शिक्षाओं और उपदेशो को लेकर इतने प्रसिद्ध हो गए थे कि हिंदू और मुसलमान दोनों ही समुदाय उन्हें बेहद मानते थे औऱ उन पर आस्था रखने लगे थे। गुरु नानक जी हिंदू और मुसलमान एकता के समर्थक थे, इसलिए जब उनकी मृत्यू हुई तो दोनों ही समुदाय उन्हें अपना मानते हुए अपने सामुदायिक तरीके से उनका अंतिम संस्कार करने का दावा करने लगे।
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करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान में) में गुरु नानक देव जी ने अंतिम सांसे लीं। यहां उन्होंने अपने अनुयायियों का पूरा एक शहर जिसमें एक धर्मशाला थी, बसा लिया था और यहां हिंदु और मुस्लिम दोनों ही तरह के अनुयायी थे। जब गुरु नानक जी ने प्राण त्यागे तो उनके अंतिम संस्कार को लेकर विवाद हुआ। जब दोनों ही पक्ष उनका शरीर लेने पहुंचे तो वहां चादर के नीचे केवल फूल ही मिले। गुरु नानक देव जी नहीं चाहते थे कि जिस धार्मिक एकता का वो जीवन पर्यंन्त पोषण करते आए, वो उनकी मृत्यु पर खत्म हो जाए, इसलिए उनकी अस्थियां फूलों में तब्दील हो गई।
इन फूलों का हिंदू और मुस्लिम अनुयायियों ने अपने अपने तरीके से अंतिम संस्कार किया। करतारपुर साहिब वो जगह है जहां मुसलिम समुदाय ने गुरु नानक देव जी की चादर और फूलों को का अंतिम संस्कार किया था।
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श्री करतार पुर साहिब में वो छोटा सा गुरुद्वारा अब भी मौजूद है जहां गुरु जी की चादर का संस्कार किया गया था। अब यहां 40 एकड़ के गुरुद्वारा परिसर में विशाल गुरुद्वारा और एक शानदार म्यूजियम भी बन चुका है।