इसके बाद धूप-अक्षत धूप-दीप अक्षत, रोली, गुड़, आदि वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन करे फिर आरती उतारें। साथ ही इस दिन ग्वालों को उपहार देने और उनकी पूजा करने का भी विधान है। इसके बाद गायों को सजा कर हरा चारा डालकर उनकी परिक्रमा की जाती है। इसके बाद गाय के साथ कुछ दूरी तक बहुत शुभ माना जाता है।
गोपाष्टमी की कथा
गोपाष्टमी मनाने के पीछे का कारण विष्णुपुराण में दिया गया है जिसके अनुसार जब भगवान इंद्र के कोप से गाय, ग्वालों को बचाने के लिए सात दिन तक गोवर्धन पर्वत को अपनी अंगुली में घारण किया था। इसके बाद इंद्र के अंहकार को चूर कर गोवर्धन को पुन: उसी जगह में रख दिया था। इसके बाद स्वयं इंद्र ने आकर भगवान के सामने आकर क्षमा मांगी थी और कहा था कि हे प्रभु आपका जन्म धरती के भार को उठाने के लिए हुआ है, लेकिन मैं यह बात भूल गया जिसके कारण मुझसे ये अपराध हुआ और आपको यज्ञ भंग होने के कारण संहार करने का आदेश दे दिया। किंतु आपने पर्वत को उखाड कर गौओं की रक्षा की। जिसके कारण आपके कर्म से प्रसन्न होकर आपको मैं कामधेनु के स्वामी होने के कारण आज से आपको गायों का स्वामी मनाया जाता है और आपका नाम गोविंद होगा।
इंद्र के चले जाने के बाद सभी ग्वाला गोविंद को देखकर अचंभित थे कि वह गोविंद को देवता माने कि गंधर्व मानें या फिर कोई राक्षस। जब सभी ग्वालों से प्रभु को प्रणाम कर कहा कि हे प्रभु आपने हम सभी के साथ-साथ गायों की रक्षा की। हम आपका शुक्रिया कैसे करें। हम आपको एक मनुष्य तो नही मान सकते है।
यह बात सुन श्री कृष्ण क्रोधित हो गए और बोले कि हे गोपगण आपको हमसे कोई संबंध बनाने में किसी भी तरह की लज्जा न आ रही हो तो मै भी तुम्हारी ही तरह एक मनुष्य हूं। मैं भी एक गोप हूं। आपको इस बात की सोचने की क्या जरुरत है कि मै एक देवता हूं या फिर कोई गंधंर्व। न ही मै राक्षस हूं। मै भी आपकी तरह ही किसी कुल में उत्पन्न हुआ हूं। आपका भाई बंधु हूं। इसलिए इस तरह विचार करने की आवश्यकता नही है।
यह सुन सभी गोपगण ने उन्हे मनाया और उनके जयकारा लगाते हुए सभी गोप गण घर गए और गौ माता की सभी ने धूमधाम से पूजा की। इसी कारण इस दिन इस पर्व को गोपाष्टमी के रूप में मनाते है।