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गूगल ने डूडल बनाकर दी बाबा आमटे को श्रद्धांजलि, जानिए सोशल वर्कर और एक्टिविस्ट मुरलीधर देवीदास आमटे की पूरी कहानी

पूरी दुनिया आज बाबा आमटे की 104वीं जयंती मना रहा है। और इस खास अवसर को इस खास अंदाज में गुगल ने बाबा आमटे की डूडल श्रद्धांजलि दी है।​ 

Written by: India TV Lifestyle Desk
Published : December 26, 2018 11:07 IST
Murlidhar Devidas Amte Baba
Murlidhar Devidas Amte Baba

नई दिल्ली: पूरी दुनिया आज बाबा आमटे की 104वीं जयंती मना रहा है। और इस खास अवसर को इस खास अंदाज में गुगल ने बाबा आमटे की डूडल श्रद्धांजलि दी है। कुछ अपने जीवनकाल में कुछ ऐसा कर जाते हैं कि वे हमेशा लोगों के जेहन में जिंदा होते हैं। समाजसेवी बाबा आमटे का नाम भी उन्‍हीं लोगों में शुमार है, जिन्‍होंने अपना पूरा जीवन कुष्‍ठरोगियों और जरूरतमंदों की सेवा के लिए समर्पित कर दिया। देश आज बाबा आमटे की 104वीं जयंती मना रहा है और इस अवसर पर गूगल ने डूडल बनाकर उन्‍हें श्रद्धांजलि दी है। इसमें स्‍लाइड शो के जरिये बाबा आमटे के जीवन दर्शन और कुष्‍ठरोगियों व जरूरतमंदों की उनकी सेवा को दर्शाया गया है।

उनका जन्‍म 26 दिसंबर, 1914 को महाराष्‍ट्र के एक संपन्‍न परिवार में हुआ था। लेकिन बचपन से ही वह समाज में लोगों के बीच व्‍याप्त असमानता से परिच‍ित थे। उनका पूरा नाम मुरलीधर देवीदास आमटे था, लेकिन लोग उन्‍हें प्‍यार से बाबा आमटे बुलाते थे। संपन्‍न परिवार में जन्‍म लेने और उसी तरीके से परवरिश के बाद भी उनका मन समाज में व्‍याप्त असमानता को लेकर सवाल करता था और वह इसे दूर करना चाहते थे।

उनका जीवन उस वक्‍त पूरी तरह बदल गया, जब उन्‍होंने एक कुष्‍ठरोगी और निरंतर बढ़ती उसकी बीमारी को देखा। इस घटना ने उन्‍हें जरूरतमंदों की मदद के लिए प्रेरित किया। केवल 35 वर्ष की उम्र में उन्‍होंने कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए आनंदवन नामक संस्था की स्थापना की, जिसने आगे चलकर कई ऐसे लोगों को मदद दी। उन्‍होंने गरीबों और बेसहारा लोगों को भी मदद मुहैया कराई।

गूगल ने अपने पोस्‍ट में कहा, 'वह (आमटे) राष्‍ट्रीय एकता में यकीन रखने वालों में थे। उन्‍होंने 1985 में भारत यात्रा शुरू की और 72 वर्ष की उम्र में कन्‍याकुमारी से कश्‍मीर तक का दौरा किया। इस दौरान उन्‍होंने 3,000 मील से अधिक दूरी की यात्रा की और इस दौरान लोगों को राष्‍ट्रीय एकजुटता के लिए प्रेरित किया।'

वर्ष 1971 मे उन्‍हें पद्मश्री से भी सम्‍मानित किया गया। 1988 में मानवाधिकारों के क्षेत्र में उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र के पुरस्‍कार से नवाजा गया तो 1999 में उन्‍हें गांधी शांति पुरस्‍कार भी दिया गया।

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