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नवरात्र स्पेशल: ऐसे करें मां दुर्गा के दूसरें स्वरुप माता चंद्रघंटा की पूजा

माना जाता है कि मां के दस हाथ हैं जिनमें इन्होंने शंख, कमल, धनुष-बाण, तलवार, कमंडल, त्रिशूल, गदा आदि शस्त्र धारण किया हुआ है। जानिए पूजा-विधि के बारें में।

India TV Lifestyle Desk
Updated : April 09, 2016 14:05 IST
chandraghanta maa- India TV Hindi
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धर्म डेस्क: नवरात्र के तीसरे दिन दुर्गा मां के तीसरे स्वरूप चंद्रघंटा देवी की पूजा करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार माता के माथे पर घंटे आकार का अर्धचन्द्र है, जिस कारण इन्हें चन्द्रघंटा कहा जाता है। इनका रूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी है। इनका स्वरूप बहुत ही अद्भुत है।

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माना जाता है कि मां के दस हाथ हैं जिनमें इन्होंने शंख, कमल, धनुष-बाण, तलवार, कमंडल, त्रिशूल, गदा आदि शस्त्र धारण किया हुआ है। साथ ही गले में सफेद फूलों की माला है। चंद्रघंटा की सिंह की सवारी करती है।

मां चन्द्रघण्टा  को मंगलदायनी कहा जाता है। यह अपने भक्तों को निरोग रखकर उन्हें वैभव तथा ऐश्वर्य प्रदान करती है। माता के घंटो मे अपूर्व शीतलता का वास होता है। सिंह पर सवार मां चंद्रघंटा का रूप युद्ध के लिए उद्धत दिखता है और उनके घंटे की प्रचंड ध्वनि से असुर और राक्षस भयभीत करते हैं।

भगवती चंद्रघंटा की उपासना करने से उपासक आध्यात्मिक और आत्मिक शक्ति प्राप्त करता है और जो श्रद्धालु इस दिन श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक दुर्गा सप्तसती का पाठ करता है, वह संसार में यश, कीर्ति एवं सम्मान को प्राप्त करता है। माता चंद्रघंटा की पूजा-अर्चना भक्तो को सभी जन्मों के कष्टों और पापों से मुक्त कर इसलोक और परलोक में कल्याण प्रदान करती है।

भगवती अपने दोनों हाथो से साधकों को चिरायु, सुख सम्पदा और रोगों से मुक्त होने का वरदान देती हैं। इनके पूजन से साधक को मणिपुर चक्र के जाग्रत होने वाली सिद्धियां स्वत: प्राप्त हो जाती हैं तथा सांसारिक कष्टों से मुक्ति मिलती है।

अगली स्लाइड में पढ़े चंद्राघंटा की पूजन विधि के बारें में

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