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Gangaur Puja 2021: आज रखा जाएगा गणगौर व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर का त्योहार मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिये और अपने सुख-सौभाग्य के लिये व्रत करती हैं।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated : April 14, 2021 23:59 IST
Gangaur Puja 2021: कल मनाया जाएगा गणगौर व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि
Image Source : INSTA/RAJASTHANISHILP/JUHI.NARUKA/ Gangaur Puja 2021: कल मनाया जाएगा गणगौर व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि 

चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को गणगौर का त्योहार मनाया जाता है।  इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिये और अपने सुख-सौभाग्य के लिये व्रत करती हैं। यह पर्व मुख्यरूप से राजस्थान का लोकपर्व है, लेकिन इस कई और राज्य लोग के बड़े ही हर्षोल्लास से मनाते है। वहीं राजस्थान में माना जाता है कि विवाह के बाद पहला गणगौर तीज रखना जरुरी होती है। इसमें चैत्र कृष्ण प्रतिपदा के दिन होलिका दहन की भस्म और तालाब की मिट्टी से ईसर-गौर (शंकर-पार्वती) की प्रतिमाएं बनाती हैं। 16 दिनों तक माता पार्वती के गीत गाए जाते हैं। इसके बाद किसी सरोवर, नदी, कुआं में गणगौर को विसर्जित किया जाता है।

गणगौर तीज के एक दिन यानी की द्वितीया तिथि को कुंवारी और नवविवाहित स्त्रियां अपने द्वारा पूजी गई गणगौरों को किसी नदी, तालाब, सरोवर में पानी पिलाती है और दूसरे दिन शाम के समय विसर्जित कर देते है। यह व्रत कुवंरी कन्या मनभावन पति के लिए और विवाहिता अपने पति से अपार प्रेम पाने और अखंड सौभाग्य के लिए करती है।

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ईसर-गौर के रुप में पूजा जाता है 

इस दिन मां पार्वती की पूजा गणगौर माता के रुप में की जाती है। इसके साथ ही भगवान शिव की पूजा ईसरजी के रूप में की जाती है। अगर आप चाहती है कि आपको मनचाहा पति या फिर पति को लंबी आयु मिले। तो गणगौर तीज के दिन ये उपाय जरुर करें। इससे आपकी हर मनोकामनाएं पूर्ण होगी।

गणगौर तीज का शुभ मुहूर्त

तृतीया तिथि: 13 अप्रैल दोपहर 12 बजकर 48 से शुरू
तृतीया तिथि समाप्त:  13 अप्रैल आज दोपहर 3 बजकर 28 मिनट तक 

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Gangaur Puja 2021: कल मनाया जाएगा गणगौर व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि

Image Source : INSTAGRAM/JUHI.NARUKA/
Gangaur Puja 2021: कल मनाया जाएगा गणगौर व्रत, जानें शुभ मुहूर्त और पूजा विधि 

गणगौर तीज की पूजा विधि

इस दिन भगवान शिव ने पार्वती जी को तथा पार्वती जी ने समस्त स्त्री समाज को सौभाग्य का वरदान दिया था। सुहागिनें व्रत धारण से पहले रेणुका (मिट्टी) की गौरी की स्थापना करती है एवं उनका पूजन किया जाता है।

व्रत धारण करने से पूर्व रेणुका गौरी की स्थापना करती हैं। इसके लिए घर के किसी कमरे में एक पवित्र स्थान पर चौबीस अंगुल चौड़ी और चौबीस अंगुल लम्बी वर्गाकार वेदी बनाकर हल्दी, चंदन, कपूर, केसर आदि से उस पर चौक पूरा जाता है। फिर उस पर बालू से गौरी अर्थात पार्वती बनाकर (स्थापना करके) इस स्थापना पर सुहाग की वस्तुएं- कांच की चूड़ियां, महावर, सिन्दूर, रोली, मेंहदी, टीका, बिंदी, कंघा, शीशा, काजल आदि चढ़ाया जाता है।

गणगौर पर विशेष रूप से मैदा के गुने बनाए जाते हैं। लड़की की शादी के बाद लड़की पहली बार गणगौर अपने मायके में मनाती है और इन गुनों तथा सास के कपड़ों का बयाना निकालकर ससुराल में भेजती है। यह विवाह के प्रथम वर्ष में ही होता है, बाद में प्रतिवर्ष गणगौर लड़की अपनी ससुराल में ही मनाती है।

ससुराल में भी वह गणगौर का उद्यापन करती है और अपनी सास को बयाना, कपड़े तथा सुहाग का सारा सामान देती है। साथ ही सोलह सुहागिन स्त्रियों को भोजन कराकर प्रत्येक को सम्पूर्ण श्रृंगार की वस्तुएं और दक्षिण दी जाती है।

गणगौर पूजन के समय स्त्रियों गौरीजी की कथा भी कहती हैं। चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से गौरी का विधिपूर्वक पूजन करके सूहाग की इस सामग्री का अर्पण किया जाता है। फिर भोग लगाने के बाद गौरी जी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरीजी पर चढ़ाए हुए सिन्दूर से महिलाएं अपनी मांग भरती हैं। गौरीजी का पूजन दोपहर को होता है। इसके पश्चात केवल एक बार भोजन करके व्रत का पारण किया जाता है। गणगौर का प्रसाद पुरुषों के लिए वर्जित है।

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