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Ganga Dussehra 2019: आज कई महायोगों के साथ गंगा दशहरा, साथ ही जानें शुभ मुहूर्त, महत्व और पौराणिक कथा

Ganga Dussehra 2019: हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस साल गंगा दशहरा 12 जून, बुधवार को मनाया जा रहा है। जानें महत्व और व्रथ कथा के बार में।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: June 12, 2019 6:17 IST
Ganga Dussehra 2019- India TV Hindi
Ganga Dussehra 2019

धर्म डेस्क: हर साल ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की दशमी को गंगा दशहरा मनाया जाता है। इस साल गंगा दशहरा 12 जून, बुधवार को मनाया जा रहा है। 75 साल बाद ऐसा हो रहा है जब गंगा दशहरा के दिन 1 नहीं पूरे 10 योग बन रहे हैं। जो कि पौराणिक काल में गंगा अवतरण के समय बने थे।

बन रहे है ये खास योग

गंगा अवतरण के 10 योग हैं- ज्येष्ठ, शुक्ल पक्ष, दशमी, बुधवार, हस्त नक्षत्र, व्यतिपात योग, गर करण, आनंद योग, कन्या राशि का चंद्रमा, वृषभ राशि का सूर्य है।  ज्योतिषों के अनुसार ये सभी 12 जून को बन रहे हैं। बुधवार और हस्त नक्षत्र होने से आनंद योग बनता है। इसमें दशमी और व्यतिपात मुख्य माने गए हैं

गंगा दशहरा स्‍नान का शुभ मुहूर्त
इस शुभ मुहूर्त में पूजा, दान और स्नान करें.
11 जून रात 8:19 से शुरू
12 जून शाम 6:27 तक

गंगा दशहरा का महत्व
पुरणों के अनुसार भगीरथी की तपस्या के बाद जब गंगा माता धरती पर आती हैं उस दिन ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की  दशमी थी। गंगा माता के धरती पर अवतरण के दिन को ही गंगा दशहरा के नाम से पूजा जाना जाने लगा। इस दिन गंगा नदी में खड़े होकर जो गंगा स्तोत्र पढ़ता है वह अपने सभी पापों से मुक्ति पाता है। स्कंद पुराण में दशहरा नाम का गंगा स्तोत्र दिया हुआ है।

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अगर आप गंगा नदीं नही जा पा रहे है तो आप घर के पास किसी नदी या तालाब में गंगा मां का ध्यान करते हुए स्नान कर सकता है। गंगा जी का ध्यान करते हुए षोडशोपचार से पूजन करना चाहिए। इसके बाद इस मंत्र का जाप करना चाहिए।

''ऊं नम: शिवायै नारायण्यै दशहरायै गंगायै नम:''
इस मंत्र के बाद “ऊं नमो भगवते ऎं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय पावय स्वाहा”

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मंत्र को पांच पुष्प अर्पित करते हुए गंगा को धरती पर लाने भगीरथी का नाम मंत्र से पूजन करना चाहिए। इसके साथ ही गंगा के उत्पत्ति स्थल को भी स्मरण करना चाहिए। गंगा जी की पूजा में सभी वस्तुएं दस प्रकार की होनी चाहिए। जैसे दस प्रकार के फूल, दस गंध, दस दीपक, दस प्रकार का नैवेद्य, दस पान के पत्ते, दस प्रकार के फल होने चाहिए।

अगर आप पूजन के बाद दान देना चाहते है तो दस चीजें का ही दान दें, क्योंकि ये अच्छा माना जाता है, लेकिन जौ और तिल का दान सोलह मुठ्ठी का होना चाहिए। दक्षिणा भी दस ब्राह्मणों को देनी चाहिए। जब गंगा नदी में स्नान करें तब बी दस बार डुबकी लगानी चाहिए।

गंगा जी की कथा
प्राचीनकाल में अयोध्या के राजा सागर थे। महाराजा सगर के साठ हजार पुत्र थे। एक बार सगर महाराज ने अश्वमेघ यज्ञ करने की सोची और अश्वमेघ यज्ञ के घोडे को छोड़ दिया। राजा इन्द्र यह यज्ञ असफल करना चाहते थे और उन्होंने अश्वमेघ का घोड़ा महर्षि कपिल के आश्रम में छिपा दिया।

राजा सगर के साठ हजार पुत्र इस घोड़े को ढूंढते हुए आश्रम में पहुंचे और घोड़े को देखते ही चोर-चोर चिल्लाने लगे। इससे महर्षि कपिल की तपस्या भंग हो गई और जैसे ही उन्होंने अपने नेत्र खोले राजा सगर के साठ हजार पुत्रों में से एक भी जीवित नहीं बचा। सभी जलकर भस्म हो गए।

राजा सगर, उनके बाद अंशुमान और फिर महाराज दिलीप तीनों ने मृतात्माओं की मुक्ति के लिए घोर तपस्या की ताकि वह गंगा को धरती पर ला सकें किन्तु सफल नहीं हो पाए और अपने प्राण त्याग दिए। गंगा को इसलिए लाना पड़ रहा था क्योंकि पृथ्वी का सारा जल अगस्त्य ऋषि पी गये थे और पुर्वजों की शांति तथा तर्पण के लिए कोई नदी नहीं बची थी।

महाराज दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए उन्होंने गंगा को धरती पर लाने के लिए घोर तपस्या की और एक दिन ब्रह्मा जी उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर प्रकट हुए और भगीरथ को वर मांगने के लिए कहा तब भगीरथ ने गंगा जी को अपने साथ धरती पर ले जाने की बात कही जिससे वह अपने साठ हजार पूर्वजों की मुक्ति कर सकें। ब्रह्मा जी ने कहा कि मैं गंगा को तुम्हारे साथ भेज तो दूंगा लेकिन उसके अति तीव्र वेग को सहन करेगा? इसके लिए तुम्हें भगवान शिव की शरण लेनी चाहिए वही तुम्हारी मदद करेगें।

अब भगीरथ भगवान शिव की तपस्या एक टांग पर खड़े होकर करते हैं। भगवान शिव भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर गंगाजी को अपनी जटाओं में रोकने को तैयार हो जाते हैं। गंगा को अपनी जटाओं में रोककर एक जटा को पृथ्वी की ओर छोड देते हैं। इस प्रकार से गंगा के पानी से भगीरथ अपने पूर्वजों को मुक्ति दिलाने में सफल होता है।

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