भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से गणेश चतुर्थी का पर्व शुरू हो जाएगा। दस दिवसीय गणेश उत्सव की शुरुआत 22 अगस्त से होगी जोकि 1 सितम्बर, भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तक मनाया जायेगा। गणेश उत्सव के पहले दिन श्री गणेश जी की घर में स्थापना की जाती है और पूरे दस दिनों तक उनकी विधि-विधान से पूजा करके आखिरी दिन गणेश विसर्जन किया जाता है। हिंदू धर्म में ये प्रसिद्ध त्योहारों में से एक माना जाता है। इस दिन को बप्पा के जन्म के तौर पर बनाया जाता है। जानिए गणेश चतुर्थी मनाने के पीछे की पौरणिक कथा।
गणेश चतुर्थी मनाने का कारण
एक दिन स्नान करने के लिए भगवान शंकर कैलाश पर्वत से भोगावती जगह पर गए। कहा जाता है कि उनके जाने के बाद मां पार्वती ने घर में स्नान करते समय अपने शरीर के मैल से एक पुतला बनाया था। उस पुतले को मां पार्वती ने प्राण देकर उसका नाम गणेश रखा। पार्वती जी ने गणेश से मुद्गर लेकर द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। पार्वती जी ने कहा था कि जब तक मैं स्नान करके बाहर ना आ जाऊं किसी को भी भीतर मत आने देना।
वहीं दूसरी ओर भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिव वापस घर आए तो वे घर के अंदर जाने लगे लेकिन बाल गणेश ने उन्हें रोक दिया। क्योंकि गणपति माता पार्वती के के अलावा किसी को नहीं जानते थे। ऐसे में गणपति द्वारा रोकना शिवजी ने अपना अपमान समझा और भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर चले गए।
शिवजी जब अंदर पहुंचे वे बहुत क्रोधित थे। पार्वती जी ने सोचा कि भोजन में विलम्ब के कारण महादेव क्रुद्ध हैं.। इसलिए उन्होंने तुरंत 2 थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया और भोजन करने का आग्रह किया।
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दूसरी थाली देखकर शिवजी ने पार्वती से पूछा, कि यह दूसरी थाली किसके लिए लगाई है? इस पर पार्वती कहती है कि यह थाली पुत्र गणेश के लिए, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है। यह सुनकर भगवान शिव चौंक गए और उन्होने पार्वती जी को बताया कि जो बालक बाहर पहरा दे रहा था, मैने उसका सिर धड़ से अलग कर दिया है।
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यह सुनते ही माता पार्वती दुखी होकर विलाप करने लगीं। जिसके बाद उन्होंने भगवान शिव से पुत्र को दोबारा जीवित करने का आग्रह किया। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर उस बालक के धड़ से जोड़ दिया। पुत्र गणेश को पुन: जीवित पाकर पार्वती जी बहुत प्रसन्न हुईं। यह पूरी घटना जिस दिन घटी उश दिन भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी थी। जिसके कारण यह दिन गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है।