गौरीपुत्र गणपति के जन्म का उत्सव पूरे दस दिन देश के कई राज्यों में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। पार्वती जी के शरीर के मैल से गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी। माना जाता है भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी को दोपहर में भगवान गणेश अवतरित हुए थे। गणपति की मातृभक्ति ऐसी कि माता पार्वती की आज्ञा का पालन करते हुए, देवों के देव महादेव को भी घर में प्रवेश नहीं करने दिया और अनजाने में ही पिता पुत्र का युद्ध हो गया, युद्ध में भगवान शिव ने गणेश जी का सिर धड़ से अलग कर दिया।
माता पार्वती को जब ये पता चला तो वो बहुत नाराज़ हुई आख़िरकार भगवान शिव ने गज के बच्चे का सिर काटकर बाल गणपति के धड़ से जोड़ दिया, उसके बाद सभी देवताओं ने गणपति को आशीर्वाद दिया और वो प्रथम-पूज्य, विघ्नहर्ता, सुखकर्ता कहलाएं। हिंदू धर्म में भगवन गणेश का विशेष महत्व हैं किसी भी शुभ काम की शुरुआत गणेश वंदना से ही होती है। (Ganesh Chaturthi 2018: गणेश चतुर्थी के दिन राशिनुसार ऐसे करें गणपति की पूजा, होगी हर इच्छा पूरी )
गणेश चतुर्थी पर गणपति की मूर्ति की स्थापना घरों और सार्वजनिक पंडालों में की जाती है। पूरे दस दिन यानि भाद्रपद शुक्लपक्ष की चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक लोग धूम-धाम और पूरे विधि-विधान से गणेशोत्सव मानते हैं। सार्वजनिक पंडालों में स्थापित गणपति पूजन में भी लोग बढ़-चढ़ के हिस्सा लेते हैं। मोदक गणपति को बहुत प्रिय हैं, मोदक का अर्थ होता है आनंद और ज्ञान। भगवान गणेश को बुद्धि और ज्ञान का देवता माना जाता है इसीलिए उन्हें मोदक का भोग लगाया जाता है और लोग प्रसाद के रूप में मोदक ग्रहण करते हैं।
छत्रपति शिवजी महाराज ने मुग़ल- मराठा युद्ध के बाद सावर्जनिक रूप से गणेशोत्सव की शुरुआत की थी, बाद में स्वतंत्र सेनानी लोकमान्य तिलक ने गणेश पूजन को सावर्जनिक पर्व के रूप में मनाएं जाने की शुरुआत की, इसलिए इसका महत्व सिर्फ धार्मिक नहीं है बल्कि ये पर्व राष्ट्रीय एकता का भी प्रतीक है। गणेशोत्सव महाराष्ट्र के अलावा मध्य प्रदेश, तेलंगाना, आँध्रप्रदेश कर्नाटक और गोवा में भी पूरे हर्षोलास के साथ मनाया जाता है।
(ब्लॉग की लेखिका अर्चना सिंह इंडिया टीवी में न्यूज एंकर हैं। इस लेख में व्यक्त विचार उनके अपने हैं)