हरिसिद्धिदेवी का मंदिर
उज्जैन के प्राचीन और पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है श्री हरसिद्धिदेवी देवी के मंदिर। इस मंदिर के बारें में स्कंद पुराण बताया गया है कि शिवजी के कहने पर मां भगवती ने दुष्ट दानवों का वध किया था अत: तब से ही उनका नाम हरसिद्धि नाम से प्रसिद्ध हुआ।
वही दूसरी ओर शिवपुराण के अनुसार सती की कोहनी यहां पर गिरी थी इसके साथ ही इस तांत्रिक ग्रंथों इन्हें सिद्ध शक्तिपीठ की संज्ञा दी गई है। इसके साथ ही यह देवी सम्राट विक्रमादित्य की आराध्य कुलदेवी भी कही जाती है। इस बारें में एक कथा प्रचलित है। इसके अनुसार सम्राट विक्रमादित्य ने यहां पर घोर तपस्या की थी तथा लगातार 11 बार अपना सिर काटकर इन्हें समर्पित किया था और ग्यारह बार सिर दुबारा उनके शरीर से जुड़ गया था। इसी कारण यह मंदिर अपने अधिक महत्व रखता है।
इस मंदिर के गर्भगृह में श्रीयंत्र प्रतिष्ठित है। रुद्रसागर तालाब के निकट इस मंदिर के परकोटे में चारों ओर द्वार हैं। इस मंदिर के प्रांगण में दो विशाल दीप स्तंभ हैं जिन पर नवरात्रि में दीपक जलाए जाते हैं। इसके कोने पर एक अतिप्राचीन बावड़ी भी है। इस मंदिर के पीछे संतोषी माता एवं अगस्त्येश्वर महादेव का मंदिर है। स्कंदपुराण में उल्लेख है कि इस मंदिर के दर्शन से पुण्य की प्राप्ति होती है।
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