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बकरीद 2018: 12 अगस्त को मनाई जाएगी बकरा 'ईद', जानिए कुर्बानी का महत्व

Eid al-Adha 2019: इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र त्यौहार ईद उल अजहा जिसे बकरीद नाम से जाना जाता है। जानें इसे मनाने का कारण और तिथि।

Written by: India TV Lifestyle Desk
Updated on: August 09, 2019 6:23 IST
Barkid 2019 - India TV Hindi
Barkid 2019

Eid al-Adha 2019: इस्लाम धर्म का सबसे पवित्र त्‍यौहार ईद उल अजहा जिसे बकरीद नाम से जाना जाता है। इस बार बकरीद 12 अगस्त को मनाई जाएगी। जो कि रमजान के लगभग 70 दिनों के बाद मनाई जाती है। इसे भी ईद के नाम से जाना जाता है। इस दिन मुस्लिम समुदाय के लोग बकरे की कुर्बानी देते है। जिसका बहुत ही अधिक महत्व है।

मुस्लिम धर्म को मानने वाले लोग इस त्योहार को बहुत हर्षोल्लास से मनाते हैं। लेकिन दूसरी तरफ और सबसे महत्वपूर्ण बकरीद को कुर्बानी के लिए याद किया जाता है।

बकरीद कब मनाई जाती है
इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है। यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है।

बकरीद का महत्‍व
बकरीद का दिन फर्ज-ए-कुर्बान का दिन होता है। इस्लाम में गरीबों और मजलूमों का खास ध्यान रखने की परंपरा है। इसी वजह से बकरीद पर भी गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीनों हिस्सों में से एक हिस्सा खुद के लिए और शेष दो हिस्से समाज के गरीब और जरूरतमंद लोगों में बांट दिए जाते हैं। ऐसा करके मुस्लिम इस बात का पैगाम देते हैं कि अपने दिल की करीबी चीज़ भी हम दूसरों की बेहतरी के लिए अल्लाह की राह में कुर्बान कर देते हैं।

इस कारण दी जाती है कुर्बानी
बकरे की कुर्बानी देने के पीछे एक ऐतिहासिक तथ्य छिपा हुआ हैं जिसमे कुर्बानी की ऐसी दास्तान हैं जिसे सुनकर ही दिल कांप जाता है। हजरत इब्राहिम द्वारा अल्लाह के हुक्म पर अपने बेटे की कुर्बानी देने के लिए तैयार हो गए थे। हजरत इब्राहिम को लगा कि उन्हें सबसे प्रिय तो उनका बेटा है इसलिए उन्होंने अपने बेटे की ही बलि देना स्वीकार किया।
इसी कारण हजरत इब्राहिम को लगा कि कुर्बानी देते समय उनकी भावनाएं आड़े आ सकती हैं, इसलिए उन्होंने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। जब अपना काम पूरा करने के बाद पट्टी हटाई तो उन्होंने अपने पुत्र को अपने सामने जिन्‍दा खड़ा हुआ देखा। बेदी पर कटा हुआ दुम्बा (सउदी में पाया जाने वाला भेंड़ जैसा जानवर) पड़ा हुआ था, तभी से इस मौके पर कुर्बानी देने की प्रथा है।

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