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ईद कब मनेगी? रमज़ान के चांद से हुई है ग़फ़लत?

इस बार रमजान के चांद को लेकर देश के विभिन्न इलाकों में पैदा हुई नाइत्तेफाकी अब ईद के सिलसिले में पसोपेश के हालात पैदा कर सकती है। उलेमा ने इसे तकलीफदेह करार देते हुए सभी चांद कमेटियों से राय लेकर चांद के ऐलान के रिवाज को मजबूती से कायम रखने की जरूरत बतायी है।

Reported by: Bhasha
Published on: June 14, 2018 14:30 IST
Eid 2018- India TV Hindi
Eid 2018

लखनऊ: इस बार रमजान के चांद को लेकर देश के विभिन्न इलाकों में पैदा हुई नाइत्तेफाकी अब ईद के सिलसिले में पसोपेश के हालात पैदा कर सकती है। उलेमा ने इसे तकलीफदेह करार देते हुए सभी चांद कमेटियों से राय लेकर चांद के ऐलान के रिवाज को मजबूती से कायम रखने की जरूरत बतायी है।

भारत में इस दफा रमजान की शुरुआत को लेकर मुस्लिम समाज बंटा हुआ नजर आया और उनमें से कुछ ने 17 मई को तो बाकी ने 18 मई को पहला रोजा रखा। आमतौर पर सऊदी अरब में चांद दिखायी देने के एक दिन बाद भारत में उसके दीदार होते हैं, मगर इस दफा 16 मई को अरब के साथ-साथ यहां भी चांद दिखने की तस्दीक (पुष्टि) की गयी।

अरब से जुड़ी इस पुरानी रवायत पर अटूट विश्वास रखने वाले बहुतेरे मुसलमानों ने इस तस्दीक को नहीं माना और 17 के बजाय 18 मई को पहला रोजा रखा। रमजान में 29 या 30 रोजे होते हैं। इनकी संख्या ईद का चांद दिखने से तय होती है। अब पेंच यह है कि अगर गुरुवार 14 जून को ईद का चांद नजर आता है तो 29 रोजे ही होंगे। ऐसे में 18 मई को रोजे की शुरुआत करने वालों के 28 रोजे ही होंगे और उनका एक रोजा छूट जाएगा। वह रोजा ईद के दिन नहीं रखा जा सकेगा, क्योंकि ईद के दिन का रोजा हराम माना जाता है।

कमोबेश यही हाल ‘अलविदा’ जुमे की नमाज का भी है। जहां ज्यादातर मस्जिदों में आठ जून को यह नमाज अदा की गयी, वहीं कुछ मस्जिदों में ऐसा नहीं हुआ। अब अगर कल 14 जून को ईद का चांद नजर आता है तो जुमे (शुक्रवार) को ईद होगी। ऐसे में जहां आठ मई को अलविदा जुमा की नमाज नहीं हुई, वहां ईद के दिन अलविदा की नमाज हो ही नहीं सकती है।

दिल्ली की जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी ने  बताया कि इस अंदेशे पर अफसोस जाहिर करते हुए कहा कि वर्ष 2006 में उन्होंने देश की बड़ी चांद कमेटियों की बैठक दिल्ली में बुलायी थी। उसमें यह तय किया गया था कि कहीं पर भी अगर चांद की तस्दीक हो जाती है तो उस जगह की चांद कमेटी दूसरी कमेटी से मशविरा करे और सामूहिक रूप से कोई एक ही ऐलान हो। पिछले करीब 11 साल तक तो यह सिलसिला चला। इस दौरान अमूमन ऐसा कोई विरोधाभास देखने में नहीं आया।

उन्होंने कहा कि इस बार यह सिलसिला पूरी तरह कायम नहीं रह सका और चेन्नई तथा कर्नाटक में चांद दिखने की बात कहकर रमजान के आगाज का ऐलान कर दिया गया। केरल में दिखने वाले चांद को भारत के बाकी हिस्सों में तस्दीक के तौर पर नहीं माना जाता है। मगर चेन्नई और कर्नाटक जैसे अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में चांद दिखने के आधार पर की गयी तस्दीक से भ्रम की स्थिति पैदा हुई।

इमाम बुखारी ने कहा कि बाद में जामा मस्जिद से भी चांद का ऐलान करना पड़ा। बहरहाल जो भी वजह रही हो, ऐलान से पहले सभी चांद कमेटियों को भरोसे में नहीं लिया गया। अब यही भ्रम की स्थिति ईद को लेकर भी हो सकती है। अगर गुरुवार को चांद को लेकर कोई असहमति की स्थिति पैदा हुई तो कहीं शुक्रवार को ईद होगी और कहीं नहीं होगी।

उन्होंने कहा कि यह शरियत से जुड़ा मसला है और इसमें नाइत्तेफाकी पैदा होना तकलीफदेह है।

लखनऊ में खास इस्लामी मौकों पर चांद की तस्दीक का ऐलान करने वाली मरकजी चांद कमेटी के अध्यक्ष मौलाना खालिद रशीद फरंगी महली ने कहा कि हमने 16 मई को चांद की तस्दीक की थी। देश की ज्यादातर चांद कमेटियों ने भी उसी दिन यह ऐलान किया था, तो ज्यादातर मुसलमानों ने 17 मई को पहला रोजा रखा था।

उन्होंने कहा कि सदियों बाद ऐसा हुआ है कि पूरी दुनिया में एक साथ रमजान की शुरुआत हुई हो। यह अपने आप में बहुत अच्छा पैगाम था। अब अगर कुछ लोग इसे नहीं मानते हैं तो इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।

मौलाना खालिद रशीद ने रमजान के चांद को लेकर भ्रम के मसले पर कहा कि कोई गफलत नहीं थी। बस उत्तर प्रदेश में चांद नजर नहीं आया। इस पर बाकी जगहों से तस्दीक की गयी, जिसमें कुछ वक्त लग गया। हमने सभी बड़ी चांद कमेटियों से सम्पर्क किया, उसके बाद रमजान के चांद की तस्दीक कर दी गयी। वक्त रहते पूरे मुल्क में ऐलान कर दिया गया था।

उन्होंने कहा कि पिछले करीब 10 साल का रिकार्ड देखा जाए तो कभी ऐसी भ्रम की स्थिति नहीं बनी। कुछ लोगों का मानना है कि 200 किलोमीटर से ज्यादा दूर स्थित स्थान पर दिखे चांद की गवाही नहीं मानी जाएगी। अगर ऐसा हुआ तो सिर्फ उत्तर प्रदेश में ही कई-कई ईदें मनायी जाएंगी। यह अफसोस की बात है।

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